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Wednesday 30 December 2015

















प्रेम एक कविता है ....

प्रेम एक कविता है 
जानते हो प्रेम और कविता में 
क्या है ,जो खींचता है मन को
दोनों में प्रवाह है ,निर्बाधित प्रवाह
जब कवि की कल्पनाओ से उतरकर 
पन्नो पे उभरती है कविता,सिर्फ कोरे शब्द नहीं
समाहित  होते हैं उनमे ,कुछ आंसूं ,कुछ खिलखिलाहटें
कुछ तृप्ति का अहसास ,कुछ मुंडेर पे टंगी हुई चाहतें
कभी गुनगुनाता बचपन ,इठलाता कभी यौवन 
बस प्रेम की तरह,समेटे खुद में ये आहटें
क्योकि  प्रेम भी जब उतरता हैं ,ह्रदय की गहराइयो से
भीग जाता है इन्ही भावो से ,होकर तरबतर 
टपकता है तब यही अहसास,सिमटे हुए पलो से 
निर्बाधित ,निरंतर ,गंगा की पवित्रता लिए हुए
हाँ बस एक ही अंतर है ,जानते हो क्या 
प्रेम निशब्द होता है ,एक गहरे मौन का आनंद लिए
और सुरों में ढल जाती है कविता शब्दों का समागम लिए
पर सच तो है यह भी ,एक गहरा सच 
प्रेम एक कविता है 
बहती हुई हवा में ,ढलती हुई कविता ....

Monday 28 December 2015



दबे दबे पाँव से आयी हौले हौले ज़िंदगी ...

सच ही है ,दबे दबे पाँव से चुपचाप रोज़ आती है ज़िंदगी 
सुबह की दस्तक के साथ ,रोज़ हमे जागती है ज़िंदगी 
रात और सुबह के बीच ,जो पसरा मौन है,वही तो मौत है 
रोज़ एक उम्मीद ज़िंदगी की लिए ,कई सपनो से ओतप्रोत है 
जाने आँखें खुले न खुले, जाने सुबह मिले न मिले 
छज्जे पे सूखती कुछ अधूरी चाहते,जाने कल उन्हें धूप मिले न मिले 
फिर भी सोती है हर शै दुनिया की, आशाओ की चादर लपेटे हुए 
एक मौन की गोद में  ,अपने सारे सपनो को समेटे हुए 
कौन कहता है  उम्मीदे दुनिया की मर रही है 
जीने की चाह है तभी तो ,हर शै रोज़ इस  मौत से गुजर रही है 
एक नयी ज़िंदगी के इंतज़ार में ,रोज़ नयी आस लिए 
सांसो की लय पे ,नयी सरगम की तलाश लिए 
दबे दबे पॉव से रोज़ ,हौले हौले आती है ज़िंदगी 
सुबह की दस्तक के साथ ,रोज़ हमे जागती है ज़िंदगी 







Saturday 26 December 2015



चकोर

प्यास जब अतिरेक पर पहुँचती है 
बस वहीँ तृप्ति में बदल जाती है जैसे
प्रतीक्षा चकोर की बस ,वही उसे जीना सिखाती है
ये प्यास ये ,ये आस ,ये प्रतीक्षा और असीम तृप्ति 
यही तो बस अर्थ है जीवन का 
इसी अर्थ की खोज में हैं हम सब निरंतर 
कुछ जाने ,कुछ अनजाने 
और कुछ इसी प्यास में पूर्णता  माने लोग 
बस चकोर की तरह


प्रतीक्षा

प्रतीक्षा ही तो पर्याय है जीवन का 
जीने दे कुछ आस में ,कुछ प्यास में 
कुछ पा लून  खुद को ,खुद की तलाश में 
कुछ तो मेरे पास मेरा रहने दे ज़िंदगी 
मिलता कितना सुख इसमें बस कहने दे ज़िंदगी...





Friday 25 December 2015



कैसे एक कविता बने ....

ज़िंदगी जब पन्नो में  बह जाए तो कविता बने 
मुस्कान बच्चे की दिल को लुभाये तो कविता बने 
छुर्रियों में दादी की ,जब उम्र मुस्कुराये तो कविता बने
खुशियो से जब माँ की आँखे भर आये तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो हौले से हवा गालो को छू जाये तो कविता बने
वो भीनी सी रातरानी महक जाये तो कविता बने
वो चुपके से  खिड़की पे चाँद मुस्कुराये तो कविता बने
वो जुगनू कही दूर अँधेरे में टिमटिमाएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो बेटियां जब जब पीहर आये तो कविता बने
वो सखियाँ कोई पुरानी बतियाये  तो कविता बने
वो रूठा कोई अपना मान जाये तो कविता बने
सुदूर कोई मनचाहा गीत गुनगुनाएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो यादें प्रियतम की तड़पाएं तो कविता बने
वो इंतजार में दिन रात गुजर जाये तो कविता बने
वो आवाज प्रिय की कानो छू जाएँ तो कविता बने 
दर्पण देख कोई दुल्हन शर्माएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने


वो पंछी भोर में कलरव मचाये तो कविता बने
वो धीरे से गुलमोहर इतराये तो कविता बने
वो अमराई में कोई कोयल गीत गाये तो कविता बने
वो टिटहरी कोई बादल बुलाये तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने
ज़िंदगी जब पन्नो में बह जाए तो कविता बने


Wednesday 23 December 2015



हाँ सूरज हूँ मै,....

दूर कहीं क्षितिज में 
साँझ ढले थक कर 
समां जाता हूँ धरती की आगोश में
हाँ सूरज हूँ मै,

जलता है जो,तपिश में खुद की 
जहाँ  को रोशन करता हुआ 
साँझ की शीतलता में ,बुझती हुई तपिश लिए
समेट लेता हूँ रश्मियाँ अपनी 
दूर कही बहुत दूर ,एक टुकड़ा अवनि की चाह लिए
हाँ सूरज हूँ मै 

क्योकि कल फिर आना है मुझे
दुनिया को जगाने की प्यास लिए 
एक नई सुबह में ,जाने कितने लोगो की आस लिए 
जाने कितने लोगो का विश्वास लिए
हाँ सूरज हूँ मै

दूर कहीं क्षितिज में 
साँझ ढले थक कर 
समां जाता हूँ धरती की आगोश में
मिलन और जुदाई की परिभाषा से परे
एक सुन्दर आभासी सा ,अहसास लिए
हाँ सूरज हूँ मै

उभर आता है जो आनंद 
बिखर उठता है वही सुबह की लालिमा के साथ
एक शांत , सुन्दर भोर बन 
 यही प्रकृतिऔर प्रवृति है मेरी 
हाँ सूरज हूँ मै




Saturday 19 December 2015




कुछ लम्हें ज़िंदगी के ...

कुछ लम्हे खुद में यूँ , रच बस जाते ही 
हर लम्हा ,वो लम्हे बहुत याद आते हैं
ज़िंदगी की किताब में ,सुन्दर अभिव्यक्ति की तरह
कुछ लम्हे होते हैं मीरा की भक्ति की तरह
सुंबह की लालिमा में छुपते अंधकार से 
कुछ लम्हे होते है ,मन के उद्गार से
मीठी सी मुस्कान से ,कुछ मुरली की तान से 
कुछ लम्हे होते है ,दोनों जहान से 
लम्हों लम्हों में गुजरती उस आती जाती साँस से
कुछ लम्हे होते चकोर की बुझती सी प्यास से 
दूर वन में झूमते से चंचल ,मगन मोर से
कुछ लम्हे होते हैं ,फूटती हुई भोर से 
कभी ज़िंदगी, पूरी ज़िंदगी जीने को तरसती है
कुछ लम्हे होते है जिनमे ,पूरी ज़िंदगी बसर करती है
कुछ लम्हे खुद में यूँ , रच बस जाते ही 
हर लम्हा ,वो लम्हे बहुत याद आते हैं

Tuesday 15 December 2015




मैं ....

मेरे होने और न होने के बीच खड़ा ये कौन,
एक मौन, कुछ शून्य की परिधि से झाँकता सा
क्योकि  जब मैं नहीं होती ,बस तभी "मैं "होती हूँ 
पूरी तरह अपनी व्यापकता की बाँहें पसारे,वास्तविक मैं 
दूर तलक छटा बिखेरे ,खुले आकाश सी मैं 
और मेरे साथ होता है ये मौन,साक्षी भाव लिए
अंदर के शून्य को परिधि से बहार निकाल
भर देता है जाने कितने अहसासों से भरपूर होने की हद तक
हर सांसो और निःस्वासो के बीच खो जाता है शून्य तब
और शेष रह जाता ,छलकता सा मौन और "मैं" 
क्योकि जब मैं नहीं होती ,बस तभी "मैं" होती हूँ
साक्ष्य और साक्षी बन, अपनी व्यापकता की सार्थकता के साथ 
मुस्कुराती हुई  मैं .....

Sunday 13 December 2015






बाँसुरी

हे मनमोहन कर दे अब ,इतना निर्मल 
बस तेरी बाँसुरी बन पाऊँ 
होकर खाली पूरी तरह बस, तेरी प्रीत से भर जाऊं 
हर सांस में बस आस रही शेष
तेरे अधरों का का अमृत पाऊँ
हे मनमोहन कर दे अब ,इतना निर्मल
बस तेरी बाँसुरी बन पाऊँ ...

Saturday 12 December 2015


ये ज़िंदगी ..

एक दिन शब्दों की दौलत मेरी ,तेरे नाम कर जाऊंगी ज़िंदगी मेरी
मेरा क्या है खाली हाथ आयी थी,पर भर जाऊंगी तुझे अपने अंदर 
हर सांस के साथ और हर सांस के बाद भी  
 सुन ये ज़िंदगी मेरी..

Friday 11 December 2015

मिराज़ ज़िंदगी का


मन हाँ वही तो है
वो दूर किसी शाख  पे अटका सा 
कुछ सूखा पड़ा हिस्सा उसका 
कुछ तरबतर टपकते अहसास से भीगा

पर क्यों ,क्यों लटका है बाहर 
किस तलाश में ,टकटकी  लगाए 
कभी हँसता पागलो सा कभी मुझको रुलाये
कभी अंदर कभी बाहर, बस चहलकदमी मचाये

हाँ मन 
मन हाँ वही तो है
वो दूर किसी शाख पे अटका सा 
कुछ सूखा पड़ा हिस्सा उसका 
कुछ तरबतर टपकते अहसास से भीगा

कोशिश में हूँ 
पकड़ लूँ लपक कर 
और बड़े प्यार से या फटकार से
समेट लून उसे अंदर कहीं बहुत अंदर
क्योकि सुना है अंदर ही मिलता है सब
वो सुकून ,वो जूनून वो प्यास और वही तृप्ति 
बाहर तो ,सब मिराज़  है ,मिराज़ ज़िंदगी का 

Wednesday 9 December 2015




कभी कभी क्यों ठहर जाना चाहता हैं मन और ठहरा ही हुआ है कुछ दिनों से चुपचाप किसी कोने में ,कॉफ़ी की चुस्कियां के साथ पिछले पलटे हुए पन्नो के और आगे अनसुनी कहानी के बीच कही फंसा हुआ ,उस पत्ते की तरह ,अलसाया सा अनमना सा बस ठहरा हुआ अपने आज में कहीं झाँकने की कोशिश में .दूर कहीं झरोखे में ताकता ,कुछ झांकता खुद की तलाश में क्योकि ये ठहरा हुआ अस्तित्व मेरा तो नहीं ,फिर कहाँ हूँ मै,
 
           आज ,अभी  इसी वक़्त में जो हैं उसी  मै को स्वीकार करने और प्यार करना करना है बिना किसी शर्तो के तभी शायद निकल कर आएगा वो वास्तविक मै अंदर छुपा बैठा है जो इस कड़कड़ाते मौसम में दुबक कर रज़ाई ओठे खुद से भागता खुद से छुपता हुआ सा कम्ब्खत मन ,मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन भी नहीं स्वयं को प्यार करना स्वयं के लिए.
 
उन सभी मित्रो का शुक्रिया जिन्होंने स्वीकारा मुझे ,मेरी ही तरह ,ह्रदय से ,मेरी सहजता में ढूंढा  जिन आँखों ने अनोखपन ,अपनापन उन्हें ह्रदय की गहराइयों से नमन मेरा......

Thanks Thanks and Thanks for everything ...


Saturday 5 December 2015




Hope Faith and Love

सांसो की हर लय में मद्धम सा संगीत कोई 
गुनगुनाना चाहता है दिल फिर मिलन का गीत कोई

काले घनेरे बदलो में छुप  गया जो चाँद बन
उस वक़्त से दिल मेरे चुरा लाऊं अब एक टुकड़ा कोई

आज चल रहे है रास्ते कुछ तेज़ मुझसे चाल में 
कल ताल से ताल मिलाते निकलेगी नयी राह कोई


आ साथ बैठे पल दो पल कहीं सागर किनारे डूबकर
धड़कनो से हमारे सुर मिलायें जहाँ एक लहर कोई


याद बन कर रह गयी जो घड़ियाँ उसे जी लेने दे
फिर बनाने दे वक़्त को खूबसूरत यादो की कहानी कोई


ज़िंदगी तेरा सच तो तब भी हमे मालूम था
जी लेने दे मुझको अब सच्चा सा मेरा झूठ कोई


सांसो की हर लय में मद्धम सा संगीत कोई
गुनगुनाना चाहता है दिल फिर मिलन का गीत कोई.............

Wednesday 2 December 2015


वक़्त...


कुछ ख्वाहिशे इंतज़ार में है 
कुछ वक़्त की साख पे लटका है लम्हा कोई
बस दो घडी ,ठहर सपने मेरे 
कर लूँ इंतज़ाम वह लम्हा उतारने का 
वक़्त की साख ,कमबख्त शख्त बहुत है ....

Monday 23 November 2015






एक टुकड़ा चाँद का...

एक टुकड़ा चाँद का बस ,घोला जो मैंने पानी में 
मरमरी अहसास घुला, ज्यो रंग आसमानी में 
पड़ते है कदम कुछ चलते, कुछ थमते से क्यों
घुला हो शुरुर जैसे ,इस चाँद वाले पानी में



Saturday 21 November 2015



कुछ रिश्ते उतर आते है अंतर्मन की गहराइयो में इस तरह,सीप में छुपा रहता हो सच्चा मोती जिस तरह, जिसकी चमक बिखेर देती है उजाला अँधेरे उदास क्षणों में  और देती है सम्बल जीवन के ऊँचे नीचे रास्तो पर सतत आगे बढ़ने का. 
    जीवन एक दूर तक बहती नदी की तरह है जिसमे धार भी है ,कुछ मँझदार भी है.
कभी कड़वे अनुभव कभी, कभी मधुर क्षण . अलग अलग धाराओ को समेटे इस जीवन में मिल जाते है सच्चे रिश्ते जो रास्तो  के अंधेरो में दीपक की तरह होते हैं "प्रकाशमय" .

सच्चा साथी 

वो रोना मेरा और तेरा मुझे  गुदगुदाना
वो गुड़ियों से रूठना मेरा, तेरा मुझे हँसाना
साथ ये तब का आज तलक भाता है
सुन ये दोस्त तू याद बहुत आता है

वो चिड़ियों से की बातें शायद तुझसे ही बाटी थी 
लुका छिपा बदलो में ,उन तारो सा तुझे पाती थी 
धड़कनो की हर करवट कैसे समझ जाता है 
सुन ये दोस्त तू याद बहुत आता है

ज़िंदगी की किताब के पन्नो को पलटा, तो पाया है 
हर उम्र के अन्नुछेद में ,बस तू नजर आया है
कभी सुलझा हुआ किस्सा मेरा, कभी पहेली बन जाता है 
सुन ये दोस्त तू याद बहुत आता है ..

अँधेरे में साथ रहा , तू वो ज्योति है
सीप  में मेरे मन के, छुपा  एक मोती है 
तेरे उजियारे से ही, मेरा रास्ता जगमगाता है 
सुन ये दोस्त तू याद बहुत आता है ..






Monday 16 November 2015



अनमोल साथी ,अनमोल पल ..

मद्धम सी साँझ से झांकते उजालों की तरह 
साथ तेरा है नदिया में धारो की तरह
टुकड़ो टुकड़ो में मिलते जो लम्हें अनमोल हैं
उतार ले खुद में चल बिखरे सितारों की तरह
समां गया आकाश लो झील की आगोश में यूँ
दूर क्षितिज पर मिलते किनारो की की तरह
चल खोज ले प्रतिबिम्ब,वो तेरा मेरा 
घुल गया हवाओ  में ,गूंजती पुकारो की तरह 
मद्धम सी साँझ से झांकते उजालों की तरह 
साथ तेरा है नदिया में धारो की तरह

Tuesday 3 November 2015



Bliss
अब लगन लगी ...

कुछ अनकहे अहसास,झीने से दामन से झांक उठे 
ठहरी हुई चुप्पी गूंज उठी  संगीत की तरह 
इस लगन में मगन, मन मयूर बन नाच उठे 
देखो टपकी बुँदे ओंस की तरह आँखों से कहीं
जैसे सजदे में दर पे खुदा के, कई हाथ उठे...










Wednesday 28 October 2015





मन गुलाबी हो रहा है ...
बेमौसम बारिश के अंदाज़ निराले हैं 
कुछ  ज़िद्दी  सुर्ख  हवाएँ , कुछ बदरा काले है 
रंगीली रुत में देखो,क्यों ये खो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है, कुछ मन गुलाबी हो रहा है

सितारे शरारती कुछ लुकछिप के झांकते से है  
चाँद की खोज लिए ,चांदनी के संग ताकते से है 
छुपकर देखो चाँद ,आज बदल ओढ़े  सो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है , कुछ मन गुलाबी हो रहा है

रिमझिम झरती फुहारे,जाने क्या बोलती है
दूर खड़े  गुलमोहर की, जो  यूँ डालियाँ डोलती है 
रातरानी की सुंगंध में ,चुपके से खो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है  कुछ मन गुलाबी हो रहा है

Monday 26 October 2015



शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें...

छलक रहा जो प्रेम तेरे ,मन से अमृत की तरह
नहा रही है प्रकृति उसमे  ,झूमकर भीगती है धरा 

सुन राधिके ,तेरे कृष्ण की बाँसुरी क्या सुना रही
प्रेमलय  पे मंत्रमुग्ध सी गोपियाँ थिरकती जा रही

बरसा रहा इस  प्रेम को चाँद वह ,ओंस बना 
भीगा गया लो आज फिर,किसी मन का वो सूखा कोना ..



Thursday 22 October 2015



सुन ऐ हवा 

बालो से अटखेलियां करती हवा ये सुन जरा 
उलझे जाते हैं सपने कई ,खूबसूरत पेंच बना 
क्या करू उसका बता दे अब तू जरा 
चल छेड़ न मुझे ,बस कुछ साथ तू भी गुनगुना 
बज़ रहा संगीत कोई ,दूर कहीं सुन जरा

ऑंखें हाँ अभी देखी हैं आँखे खूबसूरत सी
और उनमे देखा झाकता अक्स मेरा
बहता तेरे साथ हवा ,मन भी मेरा बह चला
और ढल ही गया पन्नो पे फिर मन मेरा
एक ढहरी हुई ज़िंदगी में ,बहती हुई नज़्म की तरह 


Tuesday 20 October 2015

एक चिराग उम्मीद का

टांग दिया एक चिराग,आशाओ का मेरे गलियारे में  
सुना है ज़िंदगी मौंन सी गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

दामन में उजाले भरे झांकती है मेरी खिड़की से कभी 
कभी दबे पाँव अंधेरो से गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

वक़्त के उजाले हैं कभी ,वक़्त के अंधियारे अपने 
रंग बिरंगे अंदाज़ लिए निकल जाती है ,रहगुजर से मेरे 

चिराग की रोशनी में ढूंढ ही लेंगे तुझे एक रोज़ ज़िंदगी 
रोज़ एक धुंध सी छट जाती है यूँ  ही ,रहगुजर से मेरे 

टांग दिया एक चिराग,आशाओ का मेरे गलियारे में  
सुना है ज़िंदगी मौंन सी गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

Saturday 17 October 2015





Real Friends

सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,
आँखों  में ख्वाब बन ठहर भी जाया करो 
मालूम  है लम्हा लम्हों  से  छूटता  नज़र  आता  है  
जब  तू  मुझसे रूठता नज़र आता  है 
हर  साँस  दूसरी सांस  के  इंतज़ार  में  होती  है ,
और पूछते हो तुम ये ऑंखें क्यों रोती  हैं

पन्नो में दबे गुलाब की तरह 
कुछ वक़्त की सिलवटों में पड़े ख़्वाब की तरह 
ढूँढा है जैसे ,खुद को साथ में तेरे 
कुछ दोस्त होते हैं, किताब की तरह
मन से बहकर ,पन्नो में ढल जाया करो
सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,


परिभाषाओ की दहलीज़ पे बेनाम सा रिश्ता 
अँधेरी दरारों से झांकती धूप की तरह 
होता है बहुत खास ,कुछ आम सा रिश्ता 
मंज़िलों की तलाश लिए रास्तो में भी खो जाया करो 
सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,




Thursday 15 October 2015


एक झांकती हुई सी खिड़की..

एक झांकती हुई सी खिड़की है 
और एक अलसाया सा कोना घर का
झांकता सा बस मौन है पसरा हुआ 
शब्द आज नींद में है ,सो गए जैसे पन्नें ओढ़ 
शेष है बस मौन का समीकरण  
पन्नो और शब्दों के बीच
और झूमता सा एक गुलाब
मौन की अभिव्यक्ति में ..

Wednesday 14 October 2015






जीवन के हर रंग को समेटे हुए खुद  में  
देखो मुस्कुराता सा चमका है एक इन्द्रधनुष  ,
सुदूर कही आकाश  में  
उतार  लिए  है आज मैंने हर रंग ,अंतरंग होकर 
और खिल उठा है रंग  मेरा सतरंगी  ज़िंदगी की तरह.
हर रंग  को जीना सीखा रही है ज़िंदगी 
सांसो की लय पर बस आ रही कभी जा रही है ज़िंदगी
आगोश में समेट लूँ आज तुझको ये ज़िंदगी
छा जाये आकाश में इंद्रधनुषी ये रंग तेरा 
वो एक टिका काजल का मेरे, छुपा दिया तेरे रंगो में 
क्योकि भाता बहुत है मुझे इन्द्रधनुष मुस्कुराता हुआ ...

Saturday 10 October 2015





अहसास कुछ ओंस से 
भीगा  गया फिर कही सूखा सा पड़ा कोना मन का 
टपकते हैं शायद ओंस  बन कई अहसास चांदनी में 
मंद मंद हवाओ में घुल रहा मकरंद जैसे 
हौले से खिलती कलियाँ  गुंजन की रागिनी में 
बंद आँखों से  नज़र आती है जो दुनिया मुझको
खूबसूरत बहुत है  चाँद वो बस तेरी ही तरह ...

लहरे लहरो से मिलकर कहती हैं क्या 
सुनाई देता है दूर तलक गीत एक सुरीला संगीत कोई गूंजता है सुनो थम करलहरो की टकराहट प्रतिध्वनियों के अंदाज़ में हाँ मचलते हुए साहिल देखो मौजो की आवाज़ में बस यही तो है जीवन ,ख़ामोशी में गुनगुनाता हुआ कभी रुलाता कभी मुस्कुराता तो कभी खिलखिलाता हुआ हाँ जीवन है ये बहता हुआ ,साहिलों के बीच धार बनकर जीवन है ये जीता हुआ जीने की चाह लिए

Friday 9 October 2015




ठहरे हुए साहिलों में बहता हुआ सैलाब है 
और कहते है लोग सागर गहरा क्यों होता है
खुद को पाते  है परछियों में कड़ी धूप में ही हम 
आज जाना धूप का संग सुनहरा क्यों होता है 


Sunday 4 October 2015



ओ चाँद तू सुन ले जरा ...

 चाँद तुझे निहारने के ख्वाइश में एक दिन 
खुद के अक्स से इश्क न हो जाये हमको 
पूछते हो न तुम क्यों आते हो तुम 
ठहरे  से  मेरे साये में हलचल मचाते हो क्यों 
तेरे साये में दमकते है हम चाँद होकर
निहारते है खुद को अनजान होकर 
खुदगर्ज़ है हम भी कुछ ज़माने की तरह
खुद ही तलाश में तुझको सताते है हम
ये चाँद तुझे निहारने के ख्वाइश में एक दिन 
खुद के अक्स से इश्क न हो जाये हमको ....

Saturday 3 October 2015





ज़िंदगी 

चाहतें उस बच्चे की तरह है जो एक पल ज़िद पे अड़ जाता है ,तो दूसरे पल फुसला दे अगर प्यार से तो फिर बहल जाता है ,और ज़िंदगी ,ज़िंदगी एक माँ की तरह है जो समझा लेती है अंक में भर कर चाहतो को बड़े प्यार से ढेर सारी खूबसूरत कहानियो के साथ और थक हर कर सो जाती है मासूम बच्चो सी चाहते इस इंतज़ार में कि एक दिन आएगा चाँद आँगन में मेरे ढेर सारी सौगात लिए . भीग जाता है तब आँचल ज़िंदगी का उस उस मजबूर माँ की तरह जिसे मालूम ही नहीं की जरुरतो की फेहरिस्त में कब पूरी कर पायेगी वो मासूम सी ज़िद उन सोती हुई चाहतो की .कब आएगा कल्पनाओ के आकाश से निकल कर यथार्थ की धरातल पर उनका चाँद , पर आना तो होगा उसे इसी उम्मीद से रोज़ चलती है ज़िंदगी ,दौड़ती है ज़िंदगी रोज़ नए रफ़्तार लिए मन में आशा और ढेर सारा प्यार लिए.ज़िंदगी तुझे सलाम.



Wednesday 30 September 2015




मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में ...

भर गया अहसास बन रूह की गहराइयों में 
मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में 

केनवस ये मन का रंग जाती है हलकी सी छुअन 
रंग जाता  है तेरे रंग में   बहता हुआ मेरा ये मन 

देख खूबसूरत बहुत है तेरी और मेरी दुनियाँ
बस तू है और मै हूँ और है तैरती हुई परछाइयाँ 

कौन कहता है शब्द ही बोलते है इठलाते हुए 
हाँ मैंने सुना है आज निःशब्दता को भी गाते हुए

संगीत की धुन कोई नज़ारो में है,बहती धारो में है 
समेटे है दर्द जो ,दो साथ चलते किनारो में है

भर गया अहसास बन रूह की गहरीयो में 
मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में 

Monday 28 September 2015


ठहरी हुई झील सा  कभी रहता है 
झील की तरंगो में कभी कश्ती बन बहता है 
झील की गहराइयो सा कभी लगे 
हाँ मेरा ही मन मुझे  कभी अजनबी  सा लगे 

 हम तलाश में खुद की डूबते कभी उभरते हैं
किनारो की खोज में ,मंझधारो से कभी गुजरते है
 मिल ही जायेंगे खुद को,सब एक सिलसिला सा लगे 
हाँ मेरा ही मन मुझे  कभी अजनबी  सा लगे 



Wednesday 23 September 2015

झरोखे से झांकती सी यादें 

जाने किस ओर से आयी, पर आयी तो है
तेरी याद भी एक नशा है बस तेरी ही तरह

जितना डूबता हैं मन ,हम और उभर आते हैं
सुना है समुंदर भी गहरा है ,बस तेरी ही तरह 

मन के झरोखे खोल ,खो जाते हैं जब तन्हाइयो में
छू जाती है बेख़ौफ़, बन के हवा तेरी तरह 

अहसासों की छुअन है ,और सिमटते से हम है 
और इठलाती सी तेरी याद है बस तेरी ही तरह

जाने किस ओर से आयी, पर आयी तो है
तेरी याद भी एक नशा है बस तेरी ही तरह..

Friday 18 September 2015



चाँद ,हाँ  चाँद ही तो हो तुम 
प्यार की चंदनी बिखेरते से 
कभी नेह बरसाते ,कभी तरसाते 
लुक छिप जाते कभी बादलो की छाँव तले
कभी अहसाह तेरे, पूरनमासी में बदल जाते 

ढूंढते से रह  जाते है तुम्हे पलको की छीनी चादर के पीछे से
और पाते  है तारो के बीच ,कुछ इठलाते से ,गुनगुनाते से 
कभी रुठते ,कभी मनाते से ,
शीतलता से अपनी ,मेरी रूह को भिगाते  से

शीतल तेरी छाँव मालूम है फैली है दूर तलक
और निहारती पलके मेरी ,एक चकोर बन अपलक 
ठहर जाते है अहसास, जब प्यास बन आँखों में
छलक ही जाते है चकोर की  ,कोर से अमृत की तरह...


Saturday 12 September 2015

भर जाती है मन की गागर ज्यो ही 
छलक जाती हैं आँखें  जाने यूँ ही
हर आंसू हो दर्द में पगा जरुरी तो नहीं
खारा ही सही,पर कभी मिठास लिए होता है
ढलकता है पलकों से जब, कभी आस कभी गहरी प्यास लिए होता है
ओंस की बूंदो सा सहेज कर देखो ,जाने कितने अहसास लिए होता है

कभी यादों में छलके ,कभी वादो में छलके
कभी गिरते कभी सम्हलते इरादो में छलके 
कभी चाँद को भिगोये ,कभो तारो पे लुढ़क जाये   
आंसू बेबात कभी ,किनारो में छलके 
ढलकता है पलकों से जब, कभी आस कभी गहरी प्यास लिए होता है
ओंस की बूंदो सा सहेज कर देखो ,जाने कितने अहसास लिए होता है



Friday 11 September 2015



इंतज़ार

इंतज़ार ढल जाता है,
सुबह का, शाम बनकर
गहराती है जब लालिमा 
दूर क्षितिज पर ,मद्धम होती रौशनी में  
हाँ वही पर तभी दुबक जाता है 
मन के किसी कोने में ,ओढ़ कर अँधेरा
फिर एक सवेरा होने की चाहत लिए,इंतज़ार एक इंतज़ार बन 

पर रुकता  नहीं जीवन का फेरा 
फिर वो तेरा हो, या  हो मेरा 
जीवन तो चलता रहता है
रोज़ यू ही ढलता रहता है 
सुबह से शाम बन ,
रोज़ एक नयी सुबह का सपना संजोये 

सपने , हाँ सपने जो हम देखते है खुद के लिए
इक उम्र ज़िंदगी की,ढल जाने के बाद 
लगता यू है की ,की सपना ही सच है जिंदगी का 
और टांक देता है मन,आकाश में तारे बना सपनो को 
और शेष रह जाता है फिर इंतज़ार कुछ ऊंघता हुआ 
खड़ा हो जाता है हर नयी सुबह वह इंतज़ार, एक इंतज़ार बन.......



Tuesday 8 September 2015













सुनो सच कहते है हम...
The sound of silence 

सुनो सच कहते हैं हम
कभी कभी निःशब्दता भी बातें करती है 
ढेर सारी बातें ,वैसे ही जैसे मेरी खिड़की से झांकता 
वो  गुलमोहर ,इठला जाता है झूम कर 
जब निहारती देर तलक,मुस्कुराता है ,कभी गुनगुनाता है
कभी इतरारता सा नाचता है,हवाओ की छेड़खानी में मगन 
ढंग में अपने ,रंग में अपने, ले जाता जैसे  दूर कही संग में अपने 
और बिखर  जाता है वो चटक रंग मन के केनवस पे साधिकार मुझे रंगता हुआ 
सो जाता है फिर निःशब्दता ओढ़, चांदनी के पलने में वह गुलमोहर 
दूधिया चांदनी फूट पड़ती है, लालिमा बन छूकर उसको 
और रह जाती है फिर एक निःशब्दता ,बातें करती हुई 
चांदनी और मेरे बीच देर तक ,कौन कहता है अकेले हैं हम
बातें करती हर सय नज़र आती है ,सुनो सच कहते हैं हम
कभी कभी निःशब्दता भी बातें करती है 
ढेर सारी बातें ,सुनो सच कहते हैं हम 
धड़कनो की लय के साथ बतियाया है कभी 
कभी सुनना ,निःशब्दता भी बातें करती है .....

Sunday 6 September 2015


कभी महसूस किया है ,फूलो की छुअन
हौले से टकराते उनके मुलायम से अहसाह को
वह रंगो का चटक अंदाज़ ,कहता क्या है सुनो कभी

सुना है ,हौले से पंखुड़ियों का खिलना
कुछ सकुचाते कुछ इठलाते संगीत का हवा में घुलना
मद्धम सी सांसो की लय पे नाचता है जैसे
हर सुबह ,हर फूल  का वो चमन में खिलना

हाँ मैंने महसूस किया है ,उस हवा को
उस बयार को ,गुंजन के उस प्यार को
कलियों से उनके मनुहार को ,
हाँ किया है महसूस मैंने ,चमन से आती हर एक बयार को
सिमट जाता है मन ,सपना लिए खुलते फूलो को निहारने की आस लिए



Friday 4 September 2015


कृष्ण  कृष्ण कृष्ण ..
कृष्ण के प्रेम में जिस दिन कृष्ण हो जाऊं उस दिन जीवन सफल ,बहुत कठिन है डगर पनघट की पर कृष्ण प्रेम उससे ज्यादा प्रबल हो आज के दिन यही प्रार्थना है मेरे कृष्ण से ...

तू चोर भी है ,पर चितचोर भी 
इस ओर कभी उस ओर भी है 
ढूंढे से मिलता नहीं क्यों ,
छिपता है पर चहुंओर भी है 
तैरता है जो नैनो में नीर
उठती है जो मन में पीर 
बसता है तू उसमे भी 
तू  राधा की धीर में है 
खेले आँख मिचौली नटखट
इस धड़कन से उस पनघट तक 
मेरे गीत में है  ,संगीत में है
जीवन की हर रीत में है
खिलखिलाहटों में बसता है तू ही
मेरी हार में तू ,मेरी जीत में है 
छुपता है पर छुपेगा कब तक 
हर स्वासो से निःश्वासो के बीच
बंधी हुई हर रीत में है 

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें 

Friday 28 August 2015



अहसास भीगे भीगे से

छेड़ी है सरगम कुछ रात की तन्हाइयो ने 
खो रहा है चाँद क्यों बादलो की परछाइयों में 
फूटती चांदनी लेकिन कर रही है चुगलियाँ
कुछ फुसफुसाहट बिखेरती है ये बिज़लियाँ 
सुर से सुर मिला ले ये सोचते है हम खड़े  
लो एक और नयी धुन ,सुबह के इंतज़ार में है.... 
टपक रहे हैं चांदनी से ,अहसास कई देखो न 
और भीग चले है शब्द मेरे ,चांदनी में नहाये हुए....

Monday 24 August 2015


एक और सावन बीता...
एक और सावन बीता ,कुछ मन भीगा ,कुछ रह गया रीता-रीता 
भीगी सी राहो पे मिले हमराही कई  ,कभी रास्ता रह गया अकेला सा जीता
पर मंजिलो की तलाश दौड़ती रही ,कभी रूकती ,कभी चलती 
गिरती राहो पे ,कभी ख्वाबो के पर बुनती ,घुनती कभी  तलाशती 
नटखट कभी ,उदास सी ,सावन में भीगे रास्तो में एक गीले अहसास सी 
ज़िंदगी एक और कदम आगे ,कभी जीते विश्वास तो कभी भरम आगे 
तपिश में पड़ती ओस की बूंदो सी उड़ती रही ये ज़िंदगी 
और एक और सावन बीता ,कुछ मन भीगा कुछ रह गया रीता रीता 
भीगी सी राहो पे मिले हमराही कई ,कभी रास्ता रह गया अकेला सा जीता 
एक और हाँ एक और सावन बीता ,भीगी सी यादें ,कुछ टपकते अहसास देकर...

Saturday 22 August 2015


एक अभिनन्दन पत्र आप सभी मित्रो के नाम ,अवश्य पढ़े...
जीवन : निर्झर से सरिता होने की यात्रा है..


निर्झर लेखनी एक प्रयास है पूर्णता नहीं.निर्झर लेखनी एक निरंतर प्रक्रिया है  सीखने की , प्रतिदिन जीवन से, आस पास की घटित घटनाओ से ,दूसरो के जीवन से ,मन में हिलोरे लेती भावनाओ से ,तो कभी दिमाग में बादलो की तरह घुमड़ते विचारो से ,उन्हें पहचानने की ,समझने की और और मन की परिपाटी में मंथन कर उसमे से सीख रुपी अमृत को आत्मसात कर जीवन में उतारने की ताकि एक दिन बन जाये जीवन बहती हुई नदी की तरह शांत सुरम्य  और अपने अंदर पड़े सभी पथरो ,मिटटी ,कंकड़ो से ऊपर उठ निर्मल जल की धारा के रूप में परिणित . 
     पर उस शांत नदी के बहाव में बदलने के पहले गुजरना होता है निर्झर को ,ऊँचे नीचे चट्टानों से ,उठते ,गिरते रास्तो से तब कही निर्झर बदलता है एक समलत पे बहती धारा के रूप में शांत ,सुरम्य गहराई लिए निर्मल और निश्छल.

वही जल ,वही उद्गम है निर्झर और सरिता का एक,पर एक ही यात्रा के दो भिन्न पहलू  ,जीवन यात्रा के दो अलग -अलग स्तर  को दर्शाते जिनका उद्देश्य एक ही है सागर की ओर गमन.उसी तरह हम सब एक ही स्त्रोत्र से निकल कर  एक ही यात्रा के सहभागी है.
   
मै आभारी हूँ अपने मित्रो का जिन्होंने मुझे कदम कदम पर ये बताया की किस तरह आगे बढ़ने के लिए  अपनी लेखनी को और गहराई में ढालने के लिए सुधार की आवश्यकता है. आभारी हूँ मेरी सखी का जिसने कुछ दिनों पहले मुझे बताया की कुछ बात है जो पहले जैसे नहीं मन को छू रही है लेखनी मेरी. मैंने अपनी हर पोस्ट पे यही लिखा है मै प्रयासरत हूँ  क्योकि सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है अंत तक हमे हर दिन हर पल सीखना है.
  मेरी रचनाओ के साथ पूर्णतः ईमानदारी करने की चेष्टा होती है मेरी ,जो महसूस कर पाती हूँ अपने आस पास के वातावरण से ,अपने जीवन से मित्रो के जीवन से वही ढालने का प्रयास होता है मेरा और हमेशा रहेगा .ह्रदय से आमंत्रित है आप सबके विचार ,आप सब  का प्यार ,आप सब की प्रेरणा जो मुझे रोज़ आगे बढ़ाती है एक कदम और निर्झर से नदी बनने की प्रक्रिया में . मेरा सौभाग्य जो इतने सच्चे और अच्छे मित्रो का साथ ईश्वर ने दिया मुझे .ह्रदय से पूरी प्रसन्नता के साथ अभिनन्दन. 

Tuesday 18 August 2015



शब्द :कुछ अहसासों से तरबतर

ब्द ,हाँ शब्द जाने कभी अटखेलियां खेलते से क्यों है
पकड़ो तो  पकड़ आते नहीं दौड़ते है बच्चो सा, आँख मिचोलियाँ खेलते क्यों है
लो लपक कर पकड़ा एक शब्द मैंने,दुबका हुआ था भीगा सा
बारिश में नहाया सा ,कुछ कुछ शरारतो में लिपटा,कुछ अहसासों से तरबतर
हाँ पाया शब्द मैंने ,कुछ खुशबुओं से भरा  ,कपकपाते हुए कोने में खड़ा 
पहचान मेरी क्या ये सोचती  क्यों हो , मै तो बेरंग हूँ ,बेनाम हूँ ,अनजान हूँ
पानी में पानी बन मिल जाऊंगा ,हवाओं से जोड़ो मुझे खुशबुएँ बिखराऊंगा
उमंगो से रंगो या आंसुओ के छींटे दो  ,जिस  अहसास में ढालो मै उसमे रंग जाऊंगा 
हाँ पाया शब्द मैंने ,कुछ खुशबुओं से भरा  ,कपकपाते हुए कोने में खड़ा 
बारिश में नहाया सा ,कुछ कुछ शरारतो में लिपटा,कुछ अहसासों से तरबतर
मै सोच में हूँ क्या रंग दूँ,हंसी से जोड़ दूँ ,या दर्द  का उसे संग दूँ
इंतज़ार ढालू पन्नो पे ,या एतबार की लकीरे उकेरूँ 
सोचती भर दूँ रंग चकोर की प्यास का ,या बिखेरूं रंग उसके विश्वास का 
आस्थाओं की खुशबुएँ हवाओ में घोल दूँ ,दिल से छलकता जो क्या वो मधुरस घोल दूँ
उड़ेल दूँ  कोमल से सुन्दर से अहसासों को,पिघलने दूँ मौन अब शब्दों में मोम बन
भर लिया अंक में तरबतर उस शब्द को ,और देखो भीगा गया वो एक पन्ना आज फिर आँचल की तरह...

Sunday 16 August 2015




खो रही है लहरे ,मचल कर लहरो की अागोश में
इस पार से उस पार तक सब डूबा हुआ संगीत में
निर्झरो ने छेड़ी देखो ये कैसे रागिनी है
झूमते है बादल भी ,इठलाती इस चांदनी में
फूटती है रौशनी ,छीनी सी एक रंध से भी
लुक चिप ले चाहे ,चाँद कितना भी ओट में

खो रही है लहरे ,मचल कर लहरो की अागोश में
इस पार से उस पार तक सब डूबा हुआ संगीत में
मद्धम सा बहना ,फिर मद्धम में मिल जाना
खिल जाना जैसे हौले से ,एक गुलाब का खुल जाना
कोमल सा अहसास ,हवाओ में जैसे घुल जाना

खो रही है लहरे ,मचल कर लहरो की अागोश में
इस पार से उस पार तक सब डूबा हुआ संगीत
नीली सी चांदनी में  नहा गया मन आज भी
और सुखी रह गयी,फिर भी आस कई ...



Thursday 13 August 2015

बचपना 

गुदगुदाता हुआ खिलखिलाता हुआ बचपन
उम्र के साथ क्यों खो जाता सा  बचपन
मासूमियत को बड़प्पन की मुखोटे में ढक कर सच में सोचो, क्या हमने भुलाया बचपन नहीं ,किसी कोने में मन के आज भी उछलता हैमचलता है ,आाँखो से चमकने को ,हंसी में खनकने को बंधा हुआ ,वो कसमसाता सा मासूम सा बचपन व्याकुल है ,बेकल है ज़िंदगी के इस दौड़ से दिखावे की इस होड़ से ,सहमा  सा छुप जाता है बचपन छोड़ दे क्यों न हम ,उस अहसास को उड़ जाने दे तितलियों की तरह मन आकाश में बहने दे सरिता सी सरलता जीवन मेंभटकने दे गुंजन बन ,बचपन फिर मन मेंयु ही बिना बात क्यों नहीं खिलखिलाए हमझूमती चले हवा तब साथ क्यों  न संग गायें हमथिरकने दो बूंदो सा ,बारिश के मौसम में बता दे वक़्त को , सख्त तू कितना हो लेकिनएक रोज़ बच्चा बन तू  भी मेरे संग रहेगा .....


Wednesday 12 August 2015

























Dream it ,wish it,do it...

सपने 

शुक्रिया ठंडी हवाओ का
शुक्रिया भीगी फिज़ाओ का
झोके के ठन्डे मुलायम से अहसास ने
देखो आज बहुत प्यार से कैसे हमे सुला दिया
जागे तो जाना 

दुनिया सपनो की बहुत खूबसूरत होती है 

सपने, हाँ सपने ही तो आस है 
जीने की जो प्यास जगाते है
थकते है जब ,भटकते हैं जब राहो में
उंगलियां पकड़ यही सपने साथ निभाते है
कितने अपने है ,फिर भी वो सपने है
और हम सच की जमीन पर  खड़े हैं 
बाहें पसारे ,आस लिए ,अहसास लिए 
मन के उड़न  खटोले से  उतर
जीवन में आकर लेते उन्हें देखने की चाह में ...