Friday 26 February 2016
Wednesday 24 February 2016
मौन सा ईश्वर मेरा ....
एक सुन्दर आभास सा होना तेरा और
ढल जाना अपरिभाषित अनुभूति में करीने से
परिभाषाओ में बंधते कहा है, ये धरती ये अम्बर
ये बदलो में छुपता चाँद ये,ये नीला सागर
मौन सा पिघता अहसास तेरा, बर्फीली शृंखलाओं में
और ढूंढती है नज़र तुझे ,जाने क्यों इधर उधर
हाँ पास ही तो हो ,मुझे छूती हवाओ में
कभी ढलती शाम के मंज़र में
कभी सर्द- गर्म रातो की बदलती अदाओ में
बिखर जाते हो लालिमा लिए रोज़ सुबह जीवन में
और ढूंढती है नज़र तुझे ,जाने क्यों इधर उधर
एक मौन बन समाएं हो मेरे अस्तित्व से अनंत तक
गूंजते हो हर क्षण प्रतिध्वनियों की श्रृंखलाओं में
और ढूंढती है नज़र तुझे ,जाने क्यों इधर उधर
एक सुन्दर आभास सा होना तेरा और
ढल जाना अपरिभाषित अनुभूति में करीने से
हां यही,बस यही तो एक सच है नितांत सत्य
तुम हो ,तुम ही तो हो इस अंत से अनत तक
अपनी मौन सी बाहें फैलाये मुझे पुकारते से
बस मेरी ही तरह ...
Monday 22 February 2016
Thank you Dad, for giving me wings to fly
पिता को समर्पित शब्द ,कुछ भावविभोर होते से ...
दूर आसमानो पे बस्ती है, एक दुनिया तेरे सपनो जैसी
हाँ कहा था तुमने वही है तेरी बस्ती और वही तेरी हस्ती
झांकता आकाशा से लुक छिप सतरंगी इद्रधनुष सुदूर
हां कहा था तुमने ,वही तेरा स्वरुप तुझमे है सतरंगी सी धूप
उठते गिरते रास्तो में ,फिसले जब जब कदम मेरे
हाँ कहा था तुमने , यही मेरी सीख,उठ फिर से और चलना सीख
दूर आसमानो पे बस्ती है, एक दुनिया तेरे सपनो जैसी
हाँ कहा था तुमने ,वही है तेरी बस्ती और वही तेरी हस्ती...
Friday 19 February 2016
माँ के तिरंगे आँचल को नमन
वन्दे मातरम ..
जिसआँचल की छाँव में चैन से हम सोते हैं
अंक में जिसके रोज हम सपने सजोतें है
पोछें आंसूं हमारा ,जब बैचैन हम होते हैं
जिसकी शान पे मेरे भाई शरहद पे फ़ना होने हैं
नमन है तिरंगे ,तुम्हे हमारा नमन है.
आज माँ का आँचल कुछ भीगा सा और आँखें नम हैं
नमन है तिरंगे ,तुम्हे हमारा नमन है.....
Tuesday 16 February 2016
जीवन को बहने दो ..
क्यों पकड़े है मन को
पंछी बन उड़ जाने दे
खोल दे सारी खिड़कियाँ
कुछ तो हवा आने दे
ज़िंदगी की सलवटों को
कुछ खोल ,कुछ धूप दे
सीलन सी पड़ी सोच को
एक तरोताज़ा रूप दे
यादो के पिटारे को
सुन्दर लम्हों से भरने दे
एक नया श्रृंगार अब तू
जीवन को करने दे
जो हो गया वो जाने दे
जो है अभी उसे पास रख
एक सुन्दर से कल का
मन में आभास रख
जीवन तो एक रास्ता है
उस जीवन का तुझे वास्ता है
और रास्ते रुकने से नहीं
चलने से तय होते हैं
मिटटी से उपजे है हम
एक दिन मिटटी में ही विलय होते हैं
मौजो के साथ,खुद को मौज में रहने दो
एक नदी की वेग सा जीवन को बहने दो
ये हस्ताक्षर तेरे..
वक़्त के मेहराब पे टकी हुयी आयतो की तरह
दुआओ में मांगी हुई खूबसूरत चाहतो की तरह
सुदूर आकाश में सूरज सा, चमके कभी
मंदिरो के मुठेर पे घंटे सा, खनके कभी
महकाएँ मन बगिया, बसंत का आभास लिए
दूधिया चांदनी में भीगे ,कुछ अहसास लिए
एक मीठी सी धुन जगाते हैं मन में मेरे
ज़िंदगी के हासिये पे अंकित ये हस्ताक्षर तेरे....
Saturday 13 February 2016
इश्क,प्यार ,मोहब्बत यही शब्द गूंजते है १४ फ़रवरी के दिन. पर प्यार क्या है? प्यार एक अवर्णनीय अनुभूति है .शब्दों और परिभाषाओ की परिधि से परे एक अपनी ही पहचान लिए अनूठा बंधन है प्यार. शब्दों के मेरे पिटारे में आज वो शब्द मुझे नहीं मिलते जो इसे परिभाषित कर पाएं पूरी तरह से .चन्द शब्दों के ताने बाने में बंधी एक छोटी सी परिभाषा प्यार की मेरा एक प्रयास ,सागर को गागर में समाहित करने का जिसके विचार भी मेरे नही ,जितना कुछ पढ़ा और समझा उन्ही से प्रेरित दो पंक्तियों के साथ आप सबको वैलेंटाइनस डे की शुभकामनायें ...
मोहब्बत न पाना है ,न खोना है
मोहब्बत का अंज़ाम तो, बस "मोहब्बत "होना है
Thursday 11 February 2016
बसंत जीवन का...
महकते है कुछ आँचल में समेटे हुए लम्हे,
वक़्त को मोतियों सा पिरोते हुए लम्हे
बसंत हाँ बसंत ,देखा है जीवन का
बिताये जो कुछ हँसते ,कुछ रोते हुए लम्हे
लो झूमते है बौराये,आम की बौर से लम्हे
उड़ते है है पंछी बन बेठौर से लम्हें
बसंत हाँ बसंत ,देखा है जीवन का
गुनगुनाये जो हँसते ,कुछ रोते हुए लम्हे
निर्झर सा बहते ,हमे भिगोते हुए लम्हे
मद्धम सी हवाओ को ,समेटे हुए लम्हे
बसंत हाँ बसंत देखा हैं जीवन का
मुझमे खो जाएँ जो कुछ , हँसते कुछ रोते हुए लम्हें
Tuesday 9 February 2016
सफर..
एक सुन्दर सी भोर .फिर सफर की ओर
ये महकती बगिया ,वो दूर चहकती चिड़ियाँ
कुछ आते कुछ जाते रास्ते ,सब है तेरे वास्ते
चल राही फिर दौड़ कर,कुछ समय पे गौर कर
कुछ बोल मीठे बोल ले,रस आज मन में घोल ले
जो पास है कितना खास है,जीवन रोज़ नयी आस है
आस रख विश्वास रख,बस जीत का अहसास रख
कुछ आते कुछ जाते रास्ते ,सब है तेरे वास्ते
चल राही फिर दौड़ कर,कुछ समय पे गौर कर
एक सुन्दर से भोर .फिर सफर की ओर...
Sunday 7 February 2016
सफर ...
रास्ता रास्ता साथ है ,रफ्ता रफ्ता साथ है
एक मोड़ खूबशूरत सा ,बढ़ा रहा फिर हाथ है
तकती सी बाहें पसारे, वो पुकारती मंज़िल मेरी
किस सोच में खड़ा राही,तेरा कारवां तेरे साथ है
जो कल था वो मुड़ गया ,कुछ आज नया जुड़ गया
वक़्त की चाल के संग ,एक धुंध सा कुछ उड़ गया
अंदाज़ सफर का यही, कभी रुलाये कभी गुदगुदाए
हर मोड़ पे रोज़ जैसे ,एक किस्सा नया जुड़ गया
रास्ता रास्ता साथ है ,रफ्ता रफ्ता साथ है
एक मोड़ खूबशूरत सा ,बढ़ा रहा फिर हाथ है
तकती सी बाहें पसारे, वो पुकारती मंज़िल मेरी
किस सोच में खड़ा राही,तेरा कारवां तेरे साथ है
Friday 5 February 2016
बचपन...
ये मासूम सा मुस्कुराता बचपन
ये चेहरे का भोलापन
ये आँखों से छलकता निर्मल मन
ये बातों से झलकता सादापन
उस मोड़ चले ,चल दौड़ चले चल
चल फिर, उस बचपन की ओर चले चल
उन बादलो में ढूंढें फिर किस्से
कुछ मेरे हिस्से ,कुछ तेरे हिस्से
कुछ पींगे मारे झूलो में,कुछ ढूंढे खुशियां फिर फूलो में
उस मोड़ चले ,चल दौड़ चले चल
चल फिर, उस बचपन की ओर चले चल....
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