Pages

Thursday 29 September 2016



अनुगूँज ..
शब्दों से परे कुछ लम्हे ,कुछ रिश्ते ,कुछ अंश जीवन के
परिभाषाओ की परिधि से परे ,कुछ सच खड़े है मुस्कुराते हुए
बादल का वसुंधरा से नाता देता है नित नया अंकुरण
और धरती तपन से तृप्ति की राह में ओढ़ लेती है धानी चुनर
लहरो का सागर में उमड़ना,फिर सिमट सागर हो जाना
कौन ढूंढता शब्दों को ,जब मन भाये लहरो का गुनगुनाना
भीगती धरती ,उमड़ती लहरे और और चाँद मुस्कुरा रहा
जाने किसकी याद में ,लो दूर पपीहा भी गा रहा
और खड़ी परछाई ने जैसे सच सा कोई पा लिया
तन के आगोश में उसने, खुद को फिर समां लिया
जाने दूर से कहीं आते शब्द गूंज उठे इस तरह
सूरज आता जाता है ,परछाई तो साथ है एक अनुगूँज की तरह......
Vandana Agnihotri

Monday 12 September 2016



आज चन्द पंत्तियो को सजाया है गुलदान में मित्रो आपके लिए ...


यादें ..
वक़्त तो बादल सा उड़ा चला जाता है
ज़िन्दगी यादो से तरबतर छोड़ कर

सुनहरे पल ..
कलम की स्याही से उतर जाते है कुछ लम्हे
ज़िन्दगी की किताब पर अमिट पहचान लिए

पागलपन ..
मन तो कहता है जो महसूस करता है
लोग पागलपन नाम दें ये और बात  है .

Sunday 11 September 2016




दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है...

हाँ ,हर एक अँधेरे मोड़ पे 
झांकता सा कोई प्रकाश 
जैसे डूबते  हुए मन में, उभरती हुई आस 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 

चाँद तो है सदियो से  मुस्कुराता यूँ ही 
बस कभी अंधियारी ,कभी उजियारी रात आती है
अँधेरी  गालियाँ,फिर चांदनी में नहाती हैं 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 

जीवन है तो सफर है ,सफर है तो डगर है 
रास्तो से धूप ,कभी छाँव टकराती है 
हमसाया बन ज़िन्दगी ,साथ गुनगुनाती है 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 








दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है...

हाँ ,हर एक अँधेरे मोड़ पे 
झांकता सा कोई प्रकाश 
जैसे डूबते  हुए मन में, उभरती हुई आस 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 

चाँद तो है सदियो से  मुस्कुराता यूँ ही 
बस कभी अंधियारी ,कभी उजियारी रात आती है
अँधेरी  गालियाँ,फिर चांदनी में नहाती हैं 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 

जीवन है तो सफर है ,सफर है तो डगर है 
रास्तो से धूप ,कभी छांव टकराती है 
हमसाया बन ज़िन्दगी ,साथ गुनगुनाती है 
दस्तक उजाले की ,नवजीवन दे जाती है
हाँ है कोई तो शय, जो राह दिखाती है 





Wednesday 7 September 2016









कुछ भाव समर्पण के ...

कितना व्यापक है आकाश ,
दूर तक पूरी दुनिया खुद में समेटे हुए
हर  शय को दुनिया की प्राण देते हुए 
बस ऐसे ही होते हैं कुछ आयाम जीवन के
खुले उम्मुक्त आसमान सी व्यापकता लेते हुए
संकुचित किसी भी दायरे से परे
बस ,मन वह आकाश हो रहा है 
नैनो का निर्झर ,हर मैल धो रहा है 
हे ईश्वर तुझे शूल नहीं ,फूल चढ़ाने हैं 
मन के इस मंदिर में  ,बस दीप जलाने है 
तिमिर मेरा ,तेरे उजाले में नहायेगा 
वह दिन जीवन में  ,जरूर आएगा 
बस प्रेम तेरा मुझमे, प्राण बन बहने दे
अब तो शरण में तेरी ,यूँ ही रहने दे ...











कुछ भाव समर्पण के ...

कितना व्यापक है आकाश ,
दूर तक पूरी दुनिया खुद में समेटे हुए
हर  शय को दुनिया की प्राण देते हुए 
बस ऐसे ही होते हैं कुछ आयाम जीवन के
खुले उम्मुक्त आसमान सी व्यापकता लेते हुए
संकुचित किसी भी दायरे से परे
बस ,मन वह आकाश हो रहा है 
नैनो का निर्झर ,हर मैल धो रहा है 
हे ईश्वर तुझे शूल नहीं ,फूल चढ़ाने हैं 
मन के इस मंदिर में  ,बस दीप जलाने है 
तिमिर मेरा ,तेरे उजाले में नहायेगा 
वह दिन जीवन में  ,जरूर आएगा 
बस प्रेम तेरा मुझसे, प्राण बन बहने दे
अब तो शरण में तेरी ,यूँ ही रहने दे ...



Sunday 4 September 2016




एक रास्ता उस चाँद तक...

एक रास्ता कुछ थमता, कुछ चलता सा
 कभी गिरता, कभी सम्हलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक

क्यों होता बैचैन मन 
गिरह  अब तू खोल मन
कभी बहता, कभी जमता सा 
दूर क्षितिज में पिघलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक 

धूप छांव से हैं रास्ते
एक पड़ाव से है रास्ते 
साया जो तेरे साथ है 
हर मंज़िल है तेरे वास्ते 
प्रतिध्वनियों में मचलता सा 
जाता तो है चाँद तक 
उस नीले आसमान तक 

एक रास्ता कुछ थमता, कुछ चलता सा
 कभी गिरता, कभी सम्हलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक