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Friday 22 January 2016















जीवन के पन्नो के कुछ ,बहुत सुन्दर अनुच्छेद
मन में रम जाते हैं ,अमिट प्रतिलिपि की तरह
पल तो आता है, गुजर जाता है कुछ देर ठहर 
पर ठहर जाती है यादें,भीनी सुगंध में नहाई सी 

Monday 18 January 2016




हाँ ये पल,जादुई सा ये पल..

सोचती हूँ क्या है इस सुन्दर से ,जादुई से पल में 
पाती हूँ बस दूर तलक फैला अथाह सा ये पल 
कितनी गहराई लिए ,सतरंगी किरणों में नहाया सा 
हाँ इसी में  हो जैसे ,सारा ब्रम्हांड समाया सा 
ये धरती ये ,ये नीलगगन ,ये समंदर का खारापन
ये सुनहरा पिघलता सूरज,ये सागर का मचलता नीलापन
कुछ रौशनी कुछ अँधेरा लिए,कई बदल घनेरा लिए 
कुछ चढ़ती रात,कुछ ढलता सबेरा लिए 
हाँ ये पल ,जादुई सा पल ,मुझमे यूँ  रमा रहा 
पूरा अनंत जैसे ,दूर क्षितिज में समां रहा 
सोचती हूँ क्या है इस सुन्दर से ,जादुई से पल में 
हाँ ये पल,जादुई सा ये पल..

Saturday 16 January 2016






पता नहीं कल के पन्नो पे लिखा क्या है ये ज़िंदगी
आज, अभी, इसी वक़्त में जीना सीखा दे अब तू मुझे 
बहता है हर पल देखो ,दरिया की तरह 
हर बून्द को उसकी ,पीना सीखा दे मुझे
झूम उंठूं ज़िंदगी ओढ़ कर , बस ज़िंदगी तेरी ही तरह ...

Saturday 2 January 2016


स्वतंत्रता की चाह..


आज अचानक दो छोटे कबूतर गलती से छत पे लगे जाल से अंदर आ गए,बहुत देर तक हमने उन्हें किसी भी तरह निकलने का प्रयास किया ,और अंततः बड़े प्यार के साथ मै उन्हें निकलने में सफल रही.मन असीम शांति ,आनंद और इश्वेर के प्रति कृतज्ञता से भर उठा.
हाँ पर इस घटना में याद रह गयी उनकी लाचार आँखे,उनकी विवशता , उनका डर और उन्हें बैचैन देख मेरी बेटी का दुखी होना .देखा मैंने उन्हें खुद को थकने की हद तक डर से इधर उधर भागते ,बैचैन हो जाता है मन वो दृश्य आखो के आगे आने पर.
हाँ सीखा पर उन छोटे पंक्षियों से अंत तक प्रयास करने का हुनर,दूसरी बात जो सीखी वो ये की ह्रदय में प्रेम और अच्छी भावना के साथ किया गया काम हमेशा सफल होता है.बस ढेर सारा प्रेम उनके प्रति मन में भर बड़े ही दुलार से उन्हें निकलने के प्रयास ने एक और सिख दे दी की प्रेम की कोई भाषा नहीं होती ,ये बेजुबान प्राणी भी समझ सकते है प्रेम और कढ़ोराता में अंतर.हम इंसान हो कर अगर सिख जाये प्रेम और सद्भावना तो और खूबसूरत हो जाये ये दुनिया.
Vandana Agnihotri