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Tuesday 6 December 2016



दो दिनों से इस तस्वीर पर लिखने की सोच रही थी .मन को छू गए तस्वीर पर लिखे शब्द.सच ही है कितना अद्दभुत रिश्ता है वसुंधरा और अरुण का.हर भोर जिसकी अरुणिमा में नाहाकर जी उठी है धरा और रवि भी लुटाता है अपनी रश्मियाँ मन खोल कर,कितने पास फिर भी कितने दूर ,और कितने दूर फिर भी साथ साथ,पर मौसम की प्रतिकूलता से तड़प उठी है जब वसुंधरा सूरज की  एक एक किरण के स्पर्श के लिए तो उभर आते होंगे शायद यही भाव ह्रदय में धरती के, पुकारते हए अपने अरुण को ह्रदय की गहराइयो से......

एक प्रयास इस अनमोल रिश्ते की अनुभूतियों को शब्दो में समेटने का

अरुण मेरे ...

गुनगुना अहसास तेरा मेरे आस पास रहने दे 
तेरा विस्तृत आभास कण कण में बहने दे 
तेरा स्पर्श जगा जाता है स्पंदन मुझमे 
कोहरे से लिपटी  , जब ठिठुरती है 
ये  वसुंधरा तेरी

मौसम का क्या ,आज है कल बदल जायेगा 
लुक छिप के यूँ सताने में ,तुम्हे क्या मज़ा आएगा
हिया में उमड़ता प्यार लिए ,अपना पूरा विस्तार लिए 
सदियो से पुकारा है, पुकारती रहेगी
ये वसुंधरा तेरी 

तेरे प्यार की तपन से, कितने जीवन पलते है 
सुंदर सी प्रकृति बन, मेरी अंक में ढलते है 
उड़ेल दो अब रश्मियाँ, कोहरे की ओट से
आँचल अपना फैलाएल निहारती है 
ये वसुंधरा तेरी