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Monday 18 April 2016





दुनिया अनोखी सी...

जाने किस दुनिया में पलती है
कुछ तेरे भीतर, कुछ मेरे अंदर चलती है

दूर इस दुनिया से, एक दुनिया अनोखी सी
जीवन से लबरेज़ ,जीवन बन ढलती है 

न सपनो के पास ,ना हकीकत के करीब
कुछ अधखुली नींद सी, आँखों में मचलती है 

समय की परिधि पे टंगी  ,उस खिड़की के पार
दूर उस क्षितिज पर ,लालिमा बन उभरती है 

दूर इस दुनिया से, एक दुनिया अनोखी सी
जीवन से लबरेज़ ,जीवन बन ढलती है 

Friday 15 April 2016

 








ज़िंदगी एक सौगात सी है ..

ज़िंदगी इस रात सी है ज़िंदगी इस बात सी है  
खुद से खुद की अधूरी मुलाकात सी है 

कुछ जलते उजाले इसमें , कुछ ढलते अँधेरे है
ढूंढा तो पाया ,ज़िंदगी एक सौगात सी है 

बहती इस रात  के आर है क्या और पार है क्या 
कुछ उलझते जवाब है ,कुछ सुलझते सवालात सी है  

छू गया हो चाँद जैसे ,हौले से हंसकर  इसे 
उतरती हुई चांदनी में ,मचलते जज्बात सी है 

ज़िंदगी इस रात सी है ज़िंदगी इस बात सी है  
खुद से खुद की अधूरी मुलाकात सी है 

Tuesday 5 April 2016



खोये कहाँ थे रूठे हुए वो शब्द मेरे
सितारों की चादर तले ,चांदनी लिबास में
मिल गए टिमटिमाते जुगनुओ से
मुस्कुराते हुए ,फिर वो शब्द मेरे

बिखरी हुई कुछ पंक्तियाँ तकती रही
अधूरी कई कहानियां मौन सी जगती रही
खोती रही हो जैसे ,अर्थ सा ये लेखनी
पन्नो को सजाते लो खिल गए ,फिर शब्द मेरे

संग जिनके नापी थी ,दूरियां आसमान की
उतारी थी कहानियां संग पंछियो के उड़ान की
मिटटी की भीनी सुआस लिए रिमझिम फुहार से
भीगे हुए अहसास लिए मिल गए फिर शब्द