खाली कलम से नज्मे ,उतरती नहीं पन्नो पर रूह जब बहती है, कोई नगमा उतर आता है खो जाता है कभी हौसला ,कुछ घटते बढ़ते चाँद सा टिमटिमाते है लफ्ज तभी ,जब चाँद मेरे अंगना उतर आता है
Tuesday 15 November 2016
Friday 11 November 2016
वक़्त की शाख से लम्हे तोड़ लेना
ज़िन्दगी सीखा देती है, बारिश मे भी धूप ओढ़ लेना
रात की चादर लपेटे
एक नयी सुबह आँखों में बसाये
पलकों में तकते खड़े है ख़्वाब
इंतज़ार लिए ,जाने कब आँखों को नींद आये
सुदूर चमकता है मन के पटल पर वो तकते ख्वाबो का साया जाने क्यों खूबसूरत बहुत है इन्द्रधनुष की तरह और ज़िंदगी फिर तैयार है सतरंगी रंगो में रंगने के लिए ..
Monday 7 November 2016
वसुंधरा की धुन...
चल दिए सब परिंदे नीड़ की राह में थम गयी है शाम फिर एक सुबह की चाह में थक कर हर परिंदो को फिर घरोंदो में सोना है धुन्धलकी शाम को मिला चांदनी बिछोना है चाँद फिर मन में शरगम कोई गा रहा मोड़ पे खड़ा देखो गुलमोहर फिर मुस्कुरा रहा सुबह फिर देखो एक तलाश लेकर आएगी जीवन की धुन हर सांस फिर गुनगुनायेगी हर रात को फिर एक दिन में खोना है हर दिन का अपना कु छहँसना कुछ रोना है हर अँधेरा कुछ रौशनी की तलाश में गा रहा मोड़ पर खड़ा देखो पलास गुनगुना रहा प्रकृति हर पल धुन नया सुना रही बरखा की चाहमें लो दूर टिटहरी गा रही आज बादलो की ज़िद है उमड़ कर नहीं खोना है खुल कर आज प्यासी वसुंधरा को भिगोना है संगीत धरा का हर अंश अंश सुना रहा मोड़ पर खड़ा देखो कदम्ब झूमा जा रहा