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Thursday 31 March 2016





फिर एक चिराग जला लो ...

लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
कुछ  दिल के अरमान जला लो



अँधेरे में लिपटी सी इस रात को
एक मद्धम सी  रोशनी काफी है
आसमान में खुलती खिड़कियों को
बस एक थमीं सी जमीन काफी है

लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
कुछ दिल के अरमान जला लो

झरोखे से टपकती है वह शीतल सी चांदनी
ओढ़ कर इसको चलो खुद में समां लो
वो सींके पे टंगा कोई सपना टिमटिमाता मेरा 
चिराग के लौ से उसकी ताल फिर  मिला लो 


लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
दिल के कुछ अरमान जला लो









वक़्त के गुलदान में आज एक और गुलाब सजा लें चलो 
एक और सुबह अपनी सी मिली वक़्त को अपना बन लें चलो 

Saturday 26 March 2016



सोंधी सी महक ज़िंदगी की .....

ऐ ज़िंदगी जब भी पलटा कोई पन्ना तेरा 
कोई भीनी सी महक से भीगता सा है मन मेरा  

कुछ यादो की महक, कुछ इरादों की महक
किसी पन्ने से टपकती है ,खुद से किये वादों की महक

कहीं किसी हासिये पे ,दर्ज़ तारीखों की फेहरिस्त
तो कही चुपके से झांकती दबी चाहतो की फेहरिस्त

किसी पन्ने पे मुस्कुराती सी , वो आखिरी लकीर
जैसे खींची हो वक़्त ने ,कोई मनचाही सी तस्वीर 

वो बड़े प्यार से उकेरा हुआ ,कोई लम्हा पुकारता सा
वो कहीं खामोश सा उदास ,कोई पल निहारता सा 

हर पन्ना गुजर जाता है लो, वक़्त का हस्ताक्षर लिए 
 हासिये पे खड़े सोचते हम ,क्या ये सब लम्हे हमने जिए 

और तोड़ती है जैसे ,गहरी तन्द्रा मेरी
वही एक भीनी सी , बड़ी अपनी सी महक तेरी

लो जुड़ गया आज का एक और  नया पन्ना तुझमे 
कोई  सोंधी सी महक  ,जगाता सा मुझमे ................ऐ ज़िंदगी 


Wednesday 2 March 2016





क्या लिखूं ?

क्या लिखूं ?
हाँ ,कभी शून्य सा सवाल ताकता है
कुछ आतुर सा ,पन्नो के आर-पार
निःशब्दता में कुछ शब्दों की तलाश लिए

हाँ ,क्या लिखूं ?
क्या लिखूं उन आँखों पर
जिनकी पलकों में टाँगे ,है कुछ सपने
कुछ तेरे से ,कुछ मेरे अपने

हाँ , क्या लिखूं ?
क्या लिखूं उन मुस्कुराहटों पर
झरती है रौशनी जिनसे बिखरती सी
गुजर जाती है अंधेरो को मेरे चीरती सी

हाँ .क्या लिखूं ?
क्या लिखूं, उन बातों पर
पा जाती हर भटकन मेरी एक रास्ता सा
और हर शब्द जैसे मुझे तलाशता सा

क्या लिखूं ?
हाँ ,कभी शून्य सा सवाल ताकता है
कुछ आतुर सा ,पन्नो के आर-पार
निःशब्दता में कुछ शब्दों की तलाश लिए ...



कुछ छूकर जाती पुरवाइयों में 
कुछ मौन से इस मन की गहराइयों में 
ढूंढतें है तुझे, ये ज़िंदगी 
बसंत से महकी हुई अमराइयों में

दूर बादलो की उकेरी लकीरो में 
कुछ धुप सी कुछ छाँव सी तकदीरों में 
ढूंढतें है तुझे ,ये ज़िंदगी 
अनोखी इस दुनिया की तस्वीरों में

दिन और रात के ढलते अंदाज़ में 
कोयल की उस सुरीली आवाज़ में 
ढूंढतें है तुझे ,ये ज़िंदगी
हर सरगम में हर साज़ में

कुछ छूकर जाती पुरवाइयों में 
कुछ मौन से इस मन की गहराइयों में 
ढूंढतें है तुझे ,ये ज़िंदगी 
बसंत से महकी हुई अमराइयों में