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Wednesday 28 October 2015





मन गुलाबी हो रहा है ...
बेमौसम बारिश के अंदाज़ निराले हैं 
कुछ  ज़िद्दी  सुर्ख  हवाएँ , कुछ बदरा काले है 
रंगीली रुत में देखो,क्यों ये खो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है, कुछ मन गुलाबी हो रहा है

सितारे शरारती कुछ लुकछिप के झांकते से है  
चाँद की खोज लिए ,चांदनी के संग ताकते से है 
छुपकर देखो चाँद ,आज बदल ओढ़े  सो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है , कुछ मन गुलाबी हो रहा है

रिमझिम झरती फुहारे,जाने क्या बोलती है
दूर खड़े  गुलमोहर की, जो  यूँ डालियाँ डोलती है 
रातरानी की सुंगंध में ,चुपके से खो रहा है 
कुछ हम गुलाबी है  कुछ मन गुलाबी हो रहा है

Monday 26 October 2015



शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें...

छलक रहा जो प्रेम तेरे ,मन से अमृत की तरह
नहा रही है प्रकृति उसमे  ,झूमकर भीगती है धरा 

सुन राधिके ,तेरे कृष्ण की बाँसुरी क्या सुना रही
प्रेमलय  पे मंत्रमुग्ध सी गोपियाँ थिरकती जा रही

बरसा रहा इस  प्रेम को चाँद वह ,ओंस बना 
भीगा गया लो आज फिर,किसी मन का वो सूखा कोना ..



Thursday 22 October 2015



सुन ऐ हवा 

बालो से अटखेलियां करती हवा ये सुन जरा 
उलझे जाते हैं सपने कई ,खूबसूरत पेंच बना 
क्या करू उसका बता दे अब तू जरा 
चल छेड़ न मुझे ,बस कुछ साथ तू भी गुनगुना 
बज़ रहा संगीत कोई ,दूर कहीं सुन जरा

ऑंखें हाँ अभी देखी हैं आँखे खूबसूरत सी
और उनमे देखा झाकता अक्स मेरा
बहता तेरे साथ हवा ,मन भी मेरा बह चला
और ढल ही गया पन्नो पे फिर मन मेरा
एक ढहरी हुई ज़िंदगी में ,बहती हुई नज़्म की तरह 


Tuesday 20 October 2015

एक चिराग उम्मीद का

टांग दिया एक चिराग,आशाओ का मेरे गलियारे में  
सुना है ज़िंदगी मौंन सी गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

दामन में उजाले भरे झांकती है मेरी खिड़की से कभी 
कभी दबे पाँव अंधेरो से गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

वक़्त के उजाले हैं कभी ,वक़्त के अंधियारे अपने 
रंग बिरंगे अंदाज़ लिए निकल जाती है ,रहगुजर से मेरे 

चिराग की रोशनी में ढूंढ ही लेंगे तुझे एक रोज़ ज़िंदगी 
रोज़ एक धुंध सी छट जाती है यूँ  ही ,रहगुजर से मेरे 

टांग दिया एक चिराग,आशाओ का मेरे गलियारे में  
सुना है ज़िंदगी मौंन सी गुजर जाती है, रहगुजर से मेरे 

Saturday 17 October 2015





Real Friends

सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,
आँखों  में ख्वाब बन ठहर भी जाया करो 
मालूम  है लम्हा लम्हों  से  छूटता  नज़र  आता  है  
जब  तू  मुझसे रूठता नज़र आता  है 
हर  साँस  दूसरी सांस  के  इंतज़ार  में  होती  है ,
और पूछते हो तुम ये ऑंखें क्यों रोती  हैं

पन्नो में दबे गुलाब की तरह 
कुछ वक़्त की सिलवटों में पड़े ख़्वाब की तरह 
ढूँढा है जैसे ,खुद को साथ में तेरे 
कुछ दोस्त होते हैं, किताब की तरह
मन से बहकर ,पन्नो में ढल जाया करो
सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,


परिभाषाओ की दहलीज़ पे बेनाम सा रिश्ता 
अँधेरी दरारों से झांकती धूप की तरह 
होता है बहुत खास ,कुछ आम सा रिश्ता 
मंज़िलों की तलाश लिए रास्तो में भी खो जाया करो 
सुनो अब यूँ ना सताया  करो ,




Thursday 15 October 2015


एक झांकती हुई सी खिड़की..

एक झांकती हुई सी खिड़की है 
और एक अलसाया सा कोना घर का
झांकता सा बस मौन है पसरा हुआ 
शब्द आज नींद में है ,सो गए जैसे पन्नें ओढ़ 
शेष है बस मौन का समीकरण  
पन्नो और शब्दों के बीच
और झूमता सा एक गुलाब
मौन की अभिव्यक्ति में ..

Wednesday 14 October 2015






जीवन के हर रंग को समेटे हुए खुद  में  
देखो मुस्कुराता सा चमका है एक इन्द्रधनुष  ,
सुदूर कही आकाश  में  
उतार  लिए  है आज मैंने हर रंग ,अंतरंग होकर 
और खिल उठा है रंग  मेरा सतरंगी  ज़िंदगी की तरह.
हर रंग  को जीना सीखा रही है ज़िंदगी 
सांसो की लय पर बस आ रही कभी जा रही है ज़िंदगी
आगोश में समेट लूँ आज तुझको ये ज़िंदगी
छा जाये आकाश में इंद्रधनुषी ये रंग तेरा 
वो एक टिका काजल का मेरे, छुपा दिया तेरे रंगो में 
क्योकि भाता बहुत है मुझे इन्द्रधनुष मुस्कुराता हुआ ...

Saturday 10 October 2015





अहसास कुछ ओंस से 
भीगा  गया फिर कही सूखा सा पड़ा कोना मन का 
टपकते हैं शायद ओंस  बन कई अहसास चांदनी में 
मंद मंद हवाओ में घुल रहा मकरंद जैसे 
हौले से खिलती कलियाँ  गुंजन की रागिनी में 
बंद आँखों से  नज़र आती है जो दुनिया मुझको
खूबसूरत बहुत है  चाँद वो बस तेरी ही तरह ...

लहरे लहरो से मिलकर कहती हैं क्या 
सुनाई देता है दूर तलक गीत एक सुरीला संगीत कोई गूंजता है सुनो थम करलहरो की टकराहट प्रतिध्वनियों के अंदाज़ में हाँ मचलते हुए साहिल देखो मौजो की आवाज़ में बस यही तो है जीवन ,ख़ामोशी में गुनगुनाता हुआ कभी रुलाता कभी मुस्कुराता तो कभी खिलखिलाता हुआ हाँ जीवन है ये बहता हुआ ,साहिलों के बीच धार बनकर जीवन है ये जीता हुआ जीने की चाह लिए

Friday 9 October 2015




ठहरे हुए साहिलों में बहता हुआ सैलाब है 
और कहते है लोग सागर गहरा क्यों होता है
खुद को पाते  है परछियों में कड़ी धूप में ही हम 
आज जाना धूप का संग सुनहरा क्यों होता है 


Sunday 4 October 2015



ओ चाँद तू सुन ले जरा ...

 चाँद तुझे निहारने के ख्वाइश में एक दिन 
खुद के अक्स से इश्क न हो जाये हमको 
पूछते हो न तुम क्यों आते हो तुम 
ठहरे  से  मेरे साये में हलचल मचाते हो क्यों 
तेरे साये में दमकते है हम चाँद होकर
निहारते है खुद को अनजान होकर 
खुदगर्ज़ है हम भी कुछ ज़माने की तरह
खुद ही तलाश में तुझको सताते है हम
ये चाँद तुझे निहारने के ख्वाइश में एक दिन 
खुद के अक्स से इश्क न हो जाये हमको ....

Saturday 3 October 2015





ज़िंदगी 

चाहतें उस बच्चे की तरह है जो एक पल ज़िद पे अड़ जाता है ,तो दूसरे पल फुसला दे अगर प्यार से तो फिर बहल जाता है ,और ज़िंदगी ,ज़िंदगी एक माँ की तरह है जो समझा लेती है अंक में भर कर चाहतो को बड़े प्यार से ढेर सारी खूबसूरत कहानियो के साथ और थक हर कर सो जाती है मासूम बच्चो सी चाहते इस इंतज़ार में कि एक दिन आएगा चाँद आँगन में मेरे ढेर सारी सौगात लिए . भीग जाता है तब आँचल ज़िंदगी का उस उस मजबूर माँ की तरह जिसे मालूम ही नहीं की जरुरतो की फेहरिस्त में कब पूरी कर पायेगी वो मासूम सी ज़िद उन सोती हुई चाहतो की .कब आएगा कल्पनाओ के आकाश से निकल कर यथार्थ की धरातल पर उनका चाँद , पर आना तो होगा उसे इसी उम्मीद से रोज़ चलती है ज़िंदगी ,दौड़ती है ज़िंदगी रोज़ नए रफ़्तार लिए मन में आशा और ढेर सारा प्यार लिए.ज़िंदगी तुझे सलाम.