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Saturday 27 May 2017








यह फूल

कितना हल्का हैं ना ये फूलसूरज की हलकी आभा के बीचमद्धम बहती हवा में झूमता सा
कुछ हवा को सुरभित कर
हौले से उन्हें चूमता सा
करता हो जैसे अपनी बाहें पसारे
सूरज की एक एक किरण का आलिंगनजैसे भर लेना चाहता है सूरज को
अपने कण कण में
जिसने पोषित किया उसके अस्तित्व को
जिसके प्रकाश ने उभारा उसे
कली की अंधेरी कोख से सुन्दरतम सहज रूप में

कितना हल्का है न फूल
सूरज की रश्मियों के बीच मुस्कुराता साखुद में मगन खुद में इठलाता सा
जैसे हर मुस्कराहट के साथ
करता हो सूरज की हर किरण का अभिनन्दन
जिससे सीखा उसने सुर्ख रंगो में खिलाना
जिसके सतरंगी रंगो से रंग चुराना
जैसे हर साँस के साथ खुद सूरज हो जाना

कितना हल्का है न फूल
हर आशंका से मुक्तअपनी उन्मुक्तता में इठलाता सा
सूरज की आभा में खुद सूरज हो जाता सा ....



Thursday 18 May 2017



वह मै मेरा ...

बचपन से जो पला मुझमे
साथ मेरे जो चला मुझमे
सपना बन आँखों में
अहसास बन कभी सांसों में
उम्र भर मेरी तलाश में
कभी रहा जिया की प्यास में
वह नटखट सा मै मेरा
मुझमे यूँ मचलता है
सागर में लहरों का
संगीत जैसे चलता है
वह नटखट सा मै मेरा
आज भी मुझमे पलता है ...




Monday 8 May 2017




कितना अद्भुत है न , ये सफर ज़िंदगी का

ज़िंदगी यूँ ही एक मोड़ पे टकरा गयी और पता चला
 इतने साल जैसे कही छुपी थी मुझमे ही मैं होकर
ये जो सफर है न अंजना सा ,जाने क्यों लगता है रिश्ता इससे बहुत पुराना सा
 कुछ उजाले बुलाते हैं ,जैसे चांदनी उतर आयी हो और जुगनू टिमटिमाते हैं
 पुकारती हो जैसे किसी दरख़्त की ओट से ज़िंदगी मुझको
 आ जाओ समेट लून तुम्हे इन उजयारी रात में
जैसे समेट लेती है चांदनी धरा को उसकी जलती बुझती प्यास में
कर लेती हूँ तब मचल कर आलिंगन उसका
हर अंधियारे को पीछे छोड़
समा जाती हूँ  गोद मे ज़िंदगी की, मै ज़िंदगी बनकर
जैसे प्रतिध्वनियां चिनारों से टकरा कर
सिमट आयी हो अंतर्मन की गहराइयों में
और शेष रह गया हो बस एक मौन अपनी निःशब्दता में भी गुनगुनाता सा
कितना अद्भुत है न , ये सफर ज़िंदगी का

Sunday 7 May 2017




सफर ज़िंदगी का ...

मन के कोने में छुपे शब्द कई
आतुर से हैं कुछ ,व्याकुल से हैं
संवेदनाओं की लहरें बेकल सी हैं कभी चंचल सी हैं
गहराइयों में मन की उठी हलचल बेनाम हैं
आभाषित और परिभाषित के बीच जो एहसास हैं
उसे आस कहूँ या प्यास कहूँ या
बरसते हुए लम्हों को समेटने का प्रयास कहूँ
ज़िंदगी के साथ अटखेलियाँ हैं चल रही
सखियों सा हाथ थामे साथ मेरे वो चल रही
रास्तो के साथ मुड़ जा रास्तो से प्यार कर
 हर पड़ाव में एक ज़िंदगी करती है बसर
 जीने का सलीका लो खुद सीखा रही है ज़िंदगी
परिभाषाओ की परिधि के पार जा रही है ज़िंदगी
कतरा कतरा वक़्त से चुरा रही है ज़िन्दगी
हर साँस के साथ आ रही कभी जा रही है ज़िंदगी
बह चले हैं शब्द सभी पन्नो पर लहरो की तरह
एक नयी आस में एक नयी तलाश में प्यास लिए जीने की .....