यह फूल
कितना हल्का हैं ना ये फूलसूरज की हलकी आभा के बीचमद्धम बहती हवा में झूमता सा
कुछ हवा को सुरभित कर
हौले से उन्हें चूमता सा
करता हो जैसे अपनी बाहें पसारे
सूरज की एक एक किरण का आलिंगनजैसे भर लेना चाहता है सूरज को
अपने कण कण में
जिसने पोषित किया उसके अस्तित्व को
जिसके प्रकाश ने उभारा उसे
कली की अंधेरी कोख से सुन्दरतम सहज रूप में
कितना हल्का है न फूल
सूरज की रश्मियों के बीच मुस्कुराता साखुद में मगन खुद में इठलाता सा
जैसे हर मुस्कराहट के साथ
करता हो सूरज की हर किरण का अभिनन्दन
जिससे सीखा उसने सुर्ख रंगो में खिलाना
जिसके सतरंगी रंगो से रंग चुराना
जैसे हर साँस के साथ खुद सूरज हो जाना
कितना हल्का है न फूल
हर आशंका से मुक्तअपनी उन्मुक्तता में इठलाता सा
सूरज की आभा में खुद सूरज हो जाता सा ....