प्रेम एक कविता है ....
प्रेम एक कविता है
जानते हो प्रेम और कविता में
क्या है ,जो खींचता है मन को
दोनों में प्रवाह है ,निर्बाधित प्रवाह
जब कवि की कल्पनाओ से उतरकर
पन्नो पे उभरती है कविता,सिर्फ कोरे शब्द नहीं
समाहित होते हैं उनमे ,कुछ आंसूं ,कुछ खिलखिलाहटें
कुछ तृप्ति का अहसास ,कुछ मुंडेर पे टंगी हुई चाहतें
कभी गुनगुनाता बचपन ,इठलाता कभी यौवन
बस प्रेम की तरह,समेटे खुद में ये आहटें
क्योकि प्रेम भी जब उतरता हैं ,ह्रदय की गहराइयो से
भीग जाता है इन्ही भावो से ,होकर तरबतर
टपकता है तब यही अहसास,सिमटे हुए पलो से
निर्बाधित ,निरंतर ,गंगा की पवित्रता लिए हुए
हाँ बस एक ही अंतर है ,जानते हो क्या
प्रेम निशब्द होता है ,एक गहरे मौन का आनंद लिए
और सुरों में ढल जाती है कविता शब्दों का समागम लिए
पर सच तो है यह भी ,एक गहरा सच
प्रेम एक कविता है
बहती हुई हवा में ,ढलती हुई कविता ....