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Wednesday 30 December 2015

















प्रेम एक कविता है ....

प्रेम एक कविता है 
जानते हो प्रेम और कविता में 
क्या है ,जो खींचता है मन को
दोनों में प्रवाह है ,निर्बाधित प्रवाह
जब कवि की कल्पनाओ से उतरकर 
पन्नो पे उभरती है कविता,सिर्फ कोरे शब्द नहीं
समाहित  होते हैं उनमे ,कुछ आंसूं ,कुछ खिलखिलाहटें
कुछ तृप्ति का अहसास ,कुछ मुंडेर पे टंगी हुई चाहतें
कभी गुनगुनाता बचपन ,इठलाता कभी यौवन 
बस प्रेम की तरह,समेटे खुद में ये आहटें
क्योकि  प्रेम भी जब उतरता हैं ,ह्रदय की गहराइयो से
भीग जाता है इन्ही भावो से ,होकर तरबतर 
टपकता है तब यही अहसास,सिमटे हुए पलो से 
निर्बाधित ,निरंतर ,गंगा की पवित्रता लिए हुए
हाँ बस एक ही अंतर है ,जानते हो क्या 
प्रेम निशब्द होता है ,एक गहरे मौन का आनंद लिए
और सुरों में ढल जाती है कविता शब्दों का समागम लिए
पर सच तो है यह भी ,एक गहरा सच 
प्रेम एक कविता है 
बहती हुई हवा में ,ढलती हुई कविता ....

Monday 28 December 2015



दबे दबे पाँव से आयी हौले हौले ज़िंदगी ...

सच ही है ,दबे दबे पाँव से चुपचाप रोज़ आती है ज़िंदगी 
सुबह की दस्तक के साथ ,रोज़ हमे जागती है ज़िंदगी 
रात और सुबह के बीच ,जो पसरा मौन है,वही तो मौत है 
रोज़ एक उम्मीद ज़िंदगी की लिए ,कई सपनो से ओतप्रोत है 
जाने आँखें खुले न खुले, जाने सुबह मिले न मिले 
छज्जे पे सूखती कुछ अधूरी चाहते,जाने कल उन्हें धूप मिले न मिले 
फिर भी सोती है हर शै दुनिया की, आशाओ की चादर लपेटे हुए 
एक मौन की गोद में  ,अपने सारे सपनो को समेटे हुए 
कौन कहता है  उम्मीदे दुनिया की मर रही है 
जीने की चाह है तभी तो ,हर शै रोज़ इस  मौत से गुजर रही है 
एक नयी ज़िंदगी के इंतज़ार में ,रोज़ नयी आस लिए 
सांसो की लय पे ,नयी सरगम की तलाश लिए 
दबे दबे पॉव से रोज़ ,हौले हौले आती है ज़िंदगी 
सुबह की दस्तक के साथ ,रोज़ हमे जागती है ज़िंदगी 







Saturday 26 December 2015



चकोर

प्यास जब अतिरेक पर पहुँचती है 
बस वहीँ तृप्ति में बदल जाती है जैसे
प्रतीक्षा चकोर की बस ,वही उसे जीना सिखाती है
ये प्यास ये ,ये आस ,ये प्रतीक्षा और असीम तृप्ति 
यही तो बस अर्थ है जीवन का 
इसी अर्थ की खोज में हैं हम सब निरंतर 
कुछ जाने ,कुछ अनजाने 
और कुछ इसी प्यास में पूर्णता  माने लोग 
बस चकोर की तरह


प्रतीक्षा

प्रतीक्षा ही तो पर्याय है जीवन का 
जीने दे कुछ आस में ,कुछ प्यास में 
कुछ पा लून  खुद को ,खुद की तलाश में 
कुछ तो मेरे पास मेरा रहने दे ज़िंदगी 
मिलता कितना सुख इसमें बस कहने दे ज़िंदगी...





Friday 25 December 2015



कैसे एक कविता बने ....

ज़िंदगी जब पन्नो में  बह जाए तो कविता बने 
मुस्कान बच्चे की दिल को लुभाये तो कविता बने 
छुर्रियों में दादी की ,जब उम्र मुस्कुराये तो कविता बने
खुशियो से जब माँ की आँखे भर आये तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो हौले से हवा गालो को छू जाये तो कविता बने
वो भीनी सी रातरानी महक जाये तो कविता बने
वो चुपके से  खिड़की पे चाँद मुस्कुराये तो कविता बने
वो जुगनू कही दूर अँधेरे में टिमटिमाएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो बेटियां जब जब पीहर आये तो कविता बने
वो सखियाँ कोई पुरानी बतियाये  तो कविता बने
वो रूठा कोई अपना मान जाये तो कविता बने
सुदूर कोई मनचाहा गीत गुनगुनाएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने

वो यादें प्रियतम की तड़पाएं तो कविता बने
वो इंतजार में दिन रात गुजर जाये तो कविता बने
वो आवाज प्रिय की कानो छू जाएँ तो कविता बने 
दर्पण देख कोई दुल्हन शर्माएं तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने


वो पंछी भोर में कलरव मचाये तो कविता बने
वो धीरे से गुलमोहर इतराये तो कविता बने
वो अमराई में कोई कोयल गीत गाये तो कविता बने
वो टिटहरी कोई बादल बुलाये तो कविता बने
आस पास ढूंढे कोई ,हर पल हर बात में कविता बने
ज़िंदगी जब पन्नो में बह जाए तो कविता बने


Wednesday 23 December 2015



हाँ सूरज हूँ मै,....

दूर कहीं क्षितिज में 
साँझ ढले थक कर 
समां जाता हूँ धरती की आगोश में
हाँ सूरज हूँ मै,

जलता है जो,तपिश में खुद की 
जहाँ  को रोशन करता हुआ 
साँझ की शीतलता में ,बुझती हुई तपिश लिए
समेट लेता हूँ रश्मियाँ अपनी 
दूर कही बहुत दूर ,एक टुकड़ा अवनि की चाह लिए
हाँ सूरज हूँ मै 

क्योकि कल फिर आना है मुझे
दुनिया को जगाने की प्यास लिए 
एक नई सुबह में ,जाने कितने लोगो की आस लिए 
जाने कितने लोगो का विश्वास लिए
हाँ सूरज हूँ मै

दूर कहीं क्षितिज में 
साँझ ढले थक कर 
समां जाता हूँ धरती की आगोश में
मिलन और जुदाई की परिभाषा से परे
एक सुन्दर आभासी सा ,अहसास लिए
हाँ सूरज हूँ मै

उभर आता है जो आनंद 
बिखर उठता है वही सुबह की लालिमा के साथ
एक शांत , सुन्दर भोर बन 
 यही प्रकृतिऔर प्रवृति है मेरी 
हाँ सूरज हूँ मै




Saturday 19 December 2015




कुछ लम्हें ज़िंदगी के ...

कुछ लम्हे खुद में यूँ , रच बस जाते ही 
हर लम्हा ,वो लम्हे बहुत याद आते हैं
ज़िंदगी की किताब में ,सुन्दर अभिव्यक्ति की तरह
कुछ लम्हे होते हैं मीरा की भक्ति की तरह
सुंबह की लालिमा में छुपते अंधकार से 
कुछ लम्हे होते है ,मन के उद्गार से
मीठी सी मुस्कान से ,कुछ मुरली की तान से 
कुछ लम्हे होते है ,दोनों जहान से 
लम्हों लम्हों में गुजरती उस आती जाती साँस से
कुछ लम्हे होते चकोर की बुझती सी प्यास से 
दूर वन में झूमते से चंचल ,मगन मोर से
कुछ लम्हे होते हैं ,फूटती हुई भोर से 
कभी ज़िंदगी, पूरी ज़िंदगी जीने को तरसती है
कुछ लम्हे होते है जिनमे ,पूरी ज़िंदगी बसर करती है
कुछ लम्हे खुद में यूँ , रच बस जाते ही 
हर लम्हा ,वो लम्हे बहुत याद आते हैं

Tuesday 15 December 2015




मैं ....

मेरे होने और न होने के बीच खड़ा ये कौन,
एक मौन, कुछ शून्य की परिधि से झाँकता सा
क्योकि  जब मैं नहीं होती ,बस तभी "मैं "होती हूँ 
पूरी तरह अपनी व्यापकता की बाँहें पसारे,वास्तविक मैं 
दूर तलक छटा बिखेरे ,खुले आकाश सी मैं 
और मेरे साथ होता है ये मौन,साक्षी भाव लिए
अंदर के शून्य को परिधि से बहार निकाल
भर देता है जाने कितने अहसासों से भरपूर होने की हद तक
हर सांसो और निःस्वासो के बीच खो जाता है शून्य तब
और शेष रह जाता ,छलकता सा मौन और "मैं" 
क्योकि जब मैं नहीं होती ,बस तभी "मैं" होती हूँ
साक्ष्य और साक्षी बन, अपनी व्यापकता की सार्थकता के साथ 
मुस्कुराती हुई  मैं .....

Sunday 13 December 2015






बाँसुरी

हे मनमोहन कर दे अब ,इतना निर्मल 
बस तेरी बाँसुरी बन पाऊँ 
होकर खाली पूरी तरह बस, तेरी प्रीत से भर जाऊं 
हर सांस में बस आस रही शेष
तेरे अधरों का का अमृत पाऊँ
हे मनमोहन कर दे अब ,इतना निर्मल
बस तेरी बाँसुरी बन पाऊँ ...

Saturday 12 December 2015


ये ज़िंदगी ..

एक दिन शब्दों की दौलत मेरी ,तेरे नाम कर जाऊंगी ज़िंदगी मेरी
मेरा क्या है खाली हाथ आयी थी,पर भर जाऊंगी तुझे अपने अंदर 
हर सांस के साथ और हर सांस के बाद भी  
 सुन ये ज़िंदगी मेरी..

Friday 11 December 2015

मिराज़ ज़िंदगी का


मन हाँ वही तो है
वो दूर किसी शाख  पे अटका सा 
कुछ सूखा पड़ा हिस्सा उसका 
कुछ तरबतर टपकते अहसास से भीगा

पर क्यों ,क्यों लटका है बाहर 
किस तलाश में ,टकटकी  लगाए 
कभी हँसता पागलो सा कभी मुझको रुलाये
कभी अंदर कभी बाहर, बस चहलकदमी मचाये

हाँ मन 
मन हाँ वही तो है
वो दूर किसी शाख पे अटका सा 
कुछ सूखा पड़ा हिस्सा उसका 
कुछ तरबतर टपकते अहसास से भीगा

कोशिश में हूँ 
पकड़ लूँ लपक कर 
और बड़े प्यार से या फटकार से
समेट लून उसे अंदर कहीं बहुत अंदर
क्योकि सुना है अंदर ही मिलता है सब
वो सुकून ,वो जूनून वो प्यास और वही तृप्ति 
बाहर तो ,सब मिराज़  है ,मिराज़ ज़िंदगी का 

Wednesday 9 December 2015




कभी कभी क्यों ठहर जाना चाहता हैं मन और ठहरा ही हुआ है कुछ दिनों से चुपचाप किसी कोने में ,कॉफ़ी की चुस्कियां के साथ पिछले पलटे हुए पन्नो के और आगे अनसुनी कहानी के बीच कही फंसा हुआ ,उस पत्ते की तरह ,अलसाया सा अनमना सा बस ठहरा हुआ अपने आज में कहीं झाँकने की कोशिश में .दूर कहीं झरोखे में ताकता ,कुछ झांकता खुद की तलाश में क्योकि ये ठहरा हुआ अस्तित्व मेरा तो नहीं ,फिर कहाँ हूँ मै,
 
           आज ,अभी  इसी वक़्त में जो हैं उसी  मै को स्वीकार करने और प्यार करना करना है बिना किसी शर्तो के तभी शायद निकल कर आएगा वो वास्तविक मै अंदर छुपा बैठा है जो इस कड़कड़ाते मौसम में दुबक कर रज़ाई ओठे खुद से भागता खुद से छुपता हुआ सा कम्ब्खत मन ,मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन भी नहीं स्वयं को प्यार करना स्वयं के लिए.
 
उन सभी मित्रो का शुक्रिया जिन्होंने स्वीकारा मुझे ,मेरी ही तरह ,ह्रदय से ,मेरी सहजता में ढूंढा  जिन आँखों ने अनोखपन ,अपनापन उन्हें ह्रदय की गहराइयों से नमन मेरा......

Thanks Thanks and Thanks for everything ...


Saturday 5 December 2015




Hope Faith and Love

सांसो की हर लय में मद्धम सा संगीत कोई 
गुनगुनाना चाहता है दिल फिर मिलन का गीत कोई

काले घनेरे बदलो में छुप  गया जो चाँद बन
उस वक़्त से दिल मेरे चुरा लाऊं अब एक टुकड़ा कोई

आज चल रहे है रास्ते कुछ तेज़ मुझसे चाल में 
कल ताल से ताल मिलाते निकलेगी नयी राह कोई


आ साथ बैठे पल दो पल कहीं सागर किनारे डूबकर
धड़कनो से हमारे सुर मिलायें जहाँ एक लहर कोई


याद बन कर रह गयी जो घड़ियाँ उसे जी लेने दे
फिर बनाने दे वक़्त को खूबसूरत यादो की कहानी कोई


ज़िंदगी तेरा सच तो तब भी हमे मालूम था
जी लेने दे मुझको अब सच्चा सा मेरा झूठ कोई


सांसो की हर लय में मद्धम सा संगीत कोई
गुनगुनाना चाहता है दिल फिर मिलन का गीत कोई.............

Wednesday 2 December 2015


वक़्त...


कुछ ख्वाहिशे इंतज़ार में है 
कुछ वक़्त की साख पे लटका है लम्हा कोई
बस दो घडी ,ठहर सपने मेरे 
कर लूँ इंतज़ाम वह लम्हा उतारने का 
वक़्त की साख ,कमबख्त शख्त बहुत है ....