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Thursday 2 February 2017







शब्दो के मोती चुनकर,जीवन गीत पिरोना है

शब्दो के मोती चुनकर,जीवन गीत पिरोना है
नैनो की बहती सरिता ,सागर में डुबोना है
बाकि तो इस रंगमंच का,ये हँसना ये रोना है

कभी चलें कभी रुके,ये कैसा पथ सलोना है
अंदर तू बैठा मेरे फिर, क्या पाना क्या खोना है
बाकि तो इस रंगमंच का ,ये हँसना ये रोना है

मिटटी से उपजे हम ,एक दिन मिटटी ही होना है
तेरी ही गोद में सर रखकर, एक दिन नींद में सोना है
बाकी तो इस रंगमंच का ,ये हँसना ये रोना है

कुछ कुछ बाकि धुंधला सा मेरे मन कोना है
 तुझसे ही उजियारा लेकर,अंतर्मन को संजोना है
बाकि तो इस रंगनच का ये हँसना ये रोना है