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Monday 30 May 2016


रेत के घरोंदे...


रेत के घरोंदे
छोटी छोटी आशा लिए 
छोटी छोटी उंगलियों से
बनते कभी ढलते रेत के घरोंदे 
वो बचपन के 

शीतल सी गीली रेत पे 
जैसे उभरती सपनो की आकृतियाँ
देख के वो चहकता मन 
लहरों से टकराते सपनो को 
कभी देख कर तरसता मन 
फिर भी नए सपने संजोना 
छोटी छोटी आशा लिए 
छोटी छोटी उंगलियों से
रेत में फिर मासूमियत भिगोना 

नयी उमंग नया उल्लास लिए 
छोटी छोटी आशा लिए 
छोटी छोटी उंगलियों से
बनते कभी ढलते रेत के घरोंदे 
वो बचपन के 

बहुत कुछ सिखाते  से
आशाओ का पाठ पढ़ाते से 
रेत के घरोंदे 

Tuesday 24 May 2016


ईश्वर 

अनकहे लब्ज़ों और अनखुले लम्हों सी 
अधखिली सी ये गुलाबी पंखुड़ियां 
गुलाबी इस आभा में ओंस बन ठहरा हुआ अहसास तेरा 
ईश्वर  तेरा ठिकाना कहा नहीं है

Saturday 21 May 2016







घर तो बस घर होता है 

दिन भर कितना  भी उड़े उन्मुक्त पंछी 
ढलती शाम के साथ नीड़ की तलाश होती है 
और बांहे पसारे  इंतज़ार लिए आँखों में 
नीड़  को भी उसके मुस्कराहट भरे चेहरे की आस होती है 

सच ही तो  है प्रकृति भी डोल उठती है 
जब निःशब्दता लिए प्रीतिध्वनियां बोल उठती है 
तभी झांकता है वो चाँद लुक छिप  कर बदलो से 
प्रकृति राज़ जाने कितने  यूँ खोल उठती है 




Sunday 15 May 2016



गुलमोहर मेरा ...

शीतल सी छाँव तेरी और उसपे झूमकर मुस्कुराना तेरा 
हर पथिक को अहसास यूँ घर का  का दे जाना तेरा 
वह लहराते हुए लबरेज़ फूलों से  झुक जाना तेरा  
धूप में भटके मन को एक ठहराव सा दे जाना तेरा

सच ही है ईश्वर  जाने किस किस रूप में आता है 
कभी आकाश की मेहराब से झांकता चाँद बन मुस्कुराता है
कभी मेरे गुलमोहर सा मदमस्त मगन  लहराता है 
हाँ गाता है साथ मेरे ,मन में कोई गीत बन उभर आता है 





Monday 9 May 2016




हे राम मेरे ,हे श्याम मेरे .....

जब यू मुझमे मैं बनकर रहते हो 
चंचल से इस निर्झर मन में 
निर्मल सरिता सा बहते हो 
हर अँधेरे में मेरे किरणों सा बहते हो
अब कर लो समाहित स्वयं में 
जिस तरह तिमिर हो निशा का 
खो जाता हर  सुबह व्योम में 
हे राम मेरे ,हे श्याम मेरे .....

अक्षय तृतीया की शुभकामनायें 

Wednesday 4 May 2016



Bliss 

वह मौन मुस्कुराता सा ...

जब कुछ नहीं रहता बस  वह  रहता है
न मैं  रहता न तू रहता है , दूर तलक बस वह रहता है 
निःशब्दता में समाते हुए शब्द लिए वह मौन मुस्कुराता सा 

सांसो की लय पे कभी मद्धम सा थिरकता सा
दूर पहाड़ों में  जैसे  बर्फ सा पिघलता सा 
न मैं  रहता न तू रहता है , दूर तलक बस वह रहता है 
अंतस से अनन्त में  समाता  हुआ वह मौन मुस्कुराता सा 

जब कुछ नहीं रहता बस  वह  रहता है
न मैं  रहता ,न तू रहता है , दूर तलक बस वह रहता है 
निःशब्दता में समाते हुए शब्द लिए वह मौन मुस्कुराता सा 

मन की लहरों को सागर में उड़ेलता सा 
ढलते सूरज सा आकाश में लालिमा उकेरता सा 
न मैं  रहता न तू रहता है , दूर तलक बस वह रहता है 
रात बन भोर की आगोश में सिमटता वह मौन मुस्कुराता सा 

जब कुछ नहीं रहता बस  वह  रहता है
न मैं  रहता ,न तू रहता है , दूर तलक बस वह रहता है 
निःशब्दता में समाते हुए शब्द लिए वह मौन मुस्कुराता सा 

Tuesday 3 May 2016






वक़्त ..

वक़्त कभी थमता कभी भागता सा 
वक़्त कभी सोया कभी जागता सा 
वक़्त  चल रहा है ,हर पल बदल रहा है 
मोम की लौ सा हर पल जल रहा है 

किसी के लिए उचाइयां लिए 
कहीं मन में गहराइयाँ लिए 
मुठ्ठी में भरी रेंत सा हर पल फिसल रहा है 
मोम की लौ सा हर पल जल रहा है 

वक़्त कभी थमता, कभी भागता सा 
वक़्त कभी सोया, कभी जगता सा 
वक़्त  चल रहा है ,हर पल बदल रहा है 
मोम की लौ सा हर पल जल रहा है