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Tuesday 19 May 2015

           जीवनसाथी मेरे


जाने क्यों मेरे सपने तेरी आँखों में दिखाई देतें  हैं 
क्यों तेरी धड़कन मेरे दिल में सुनायी देती है  
ये  मौन  सा  संगीत  क्यों  घेरे  है  हमें   
चुप्पी इस हवा की  क्या  गा  रही  है 
छूकर तुझे जो आती है बयार शरारती  
मेरे बालो को जैसे  छेड़े जा रही है  
भर चूका है अंर्तमन में जाने कौन सा अहसाह 
हर सांस के साथ मुझे गुदगुदाता हुआ  
बस सो  जाऊं एक गहरी नींद में लगता है   
तेरे  कंधो  पे  रख  कर  सर  अपना  मेरे  साथी 
मंज़िल की राह  में क्या तुम  ये एक पड़ाव दोगे   
तपती धूप का मौसम  है  क्या थोड़ी छाँव दोगे 
देखो दूर वो खड़ा पेड़ बुलाता हैं हमको     
चल   छाँव में  उसकी  खो  जाएँ  ,
एक हो जाएँ एक दूसरे का साया बन जीवनसाथी  मेरे....



Sunday 17 May 2015

सजीले सपने कुछ आँखों में  और  उनकी अटखेलियाँ
कभी नज़र आते है, कभी लुक छिप खेले आंखमिचोलियाँ
आवज़ दूँ मै कभी पकडूँ उन्हें तितलियों की तरह
आँखों में सहेज लिया कभी पलकों का केवाड़ लगा
जीने की  कशमकश में , कुछ  सामने खड़ी हो जब पहेलियाँ
आँखों को मूँद कर फिर ,तब पल दो पल साथ खुद के
खोज लेतें हैं हम कुछ इस तरह से उत्तर ज़िंदगी के
बाँहो में तब सुला लेती हैं थपकियाँ देकर
ममता लिए आँचल में ,जैसे पक्की सहेली हो ज़िंदगी मेरी
शेष रह जाता हैं तब एक मौन हर प्रश्नोत्तर की परिधि से निकल
और निखार आता हैं चेहरा तब पूर्णता लिए चाँद की तरह
चमकता, दमकता और शीतल चाँदनी में नहाया हुआ ..................



Tuesday 12 May 2015



आज एक मंगल कामना सभी की रक्षा के लिए .माँ सबको अपने सानिध्य में सुरक्षित रखें और भूकम्प पीड़ित क्षेत्रो में सभी सहायता उपलब्ध कराएं .आज हम सब, अपना कुछ समय मंगल प्रार्थना में जरूर देवे और भूकम्प पीडितो के लिए ईश्वर से  और प्रकृति से  मिल कर प्रार्थना  करें.

शरणागतदीनार्तपरित्राण  परायणे |
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते ||

Saturday 9 May 2015

                      माँ

माँ एक साधना ,एक स्तुति एक,एक आरती है जो गूंजती है जीवन के प्रांगण में मंगल कामनाएं लिए अपने मन में अपने बच्चो के लिए.माँ सुबह की पहली किरण सी कोमल ,शीतल अहसास है जो सहला जाता है ठंडी हवाओँ के साथ हमे प्यार से स्पर्श कर.जब अधीर हो हमारे मुख से अनायास  ही निकलता  है जो एक शब्द  वो "माँ" है.
        माँ जीवन का आधार है , विस्तार है जो ९ महीने हमे अपने अंदर आधार देती है.,फिर अगले ९ साल तक हमारे व्यक्तित्व को आकर देती है ,फिर हमे जीवन भर प्यार देती है.एक वो जगह दुनिया की जहाँ हम अपने सहज रूप को जीते है और फिर भी उसकी ममता का अमृत पीते हैँ. जहाँ पहुंच बच्चा बन जाता है मन ,अपनी उम्र के किसी भी पड़ाव पर. माँ शब्द ही पूर्ण व्याख्या है ,इसलिए और मै क्या लिखूँ, मेरी लेखनी से परे  है जिसकी व्याख्या वह ईश्वर की बनाई अद्भुत कृति है "माँ".


                                        Happy Mother's Day 

Friday 8 May 2015



 स्वतंत्रता : एक खोज 

स्वतंत्रता , हमारे मन के बहुत ही गहरे छुपा एक भाव जो उतना ही सत्य है ,सार्थक है जितना हमारा अस्तित्व .मन की गहराइयो में हम सब यही तो चाहते है ,स्वतंत्र होना ,अपने ही बनायें वैचारिक मापदंड से ,अपने अंदर की बैचैनी से .अपनी बाहर की  ज़िंदगी  में कही अंदर स्वयं को छुपा रखा है जो, उस व्यक्तित्व की स्वतंत्रता .हमने स्वयं की असीम क्षमता को बांध रखा है अपनी सोच के दायरे में ,उसका गलत आकलन करके.जब हम धीरे धीरे स्वयं के करीब जाते है ,तब कभी अहसास कर पाते हैं अपने  अंदर छुपे उस सागर का जिसमे जाने कितने मोती भरे पड़े हैं , और वो पहला कदम होता है अपने अंदर के "मै" को ढूंढने की ओर और  जब फूटता है उस "मै" का अंकुर मन की  धरातल पर तब आरम्भ होता है एक जीवन का जो एक फलदार मज़बूत घने वृक्ष सा खड़ा होता है ,जिसके सानिध्य में मिलती है लोगो को उसके प्रेम की शीतल छाया , मुस्कुराहटों  के फूल और अपनेपन के  मीठे फल.
           इस दुनिया की भीड़ में जब हम खुद को ढूंढ लेते है उस दिन से खुशियो को हमारी खोज होती है.क्या हमने पहला कदम बढ़ाया है स्वतंत्रता की ओर ? आपकी तरह मै भी प्रयासरत हूँ .............
    
बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा चल ,बुलाये तुझे वो खुला आसमान 
दीवारो की खुटी पे टांगे थे जिन सपनो को
अब तू उनको  आवाज़ लगा 
चांदनी ओढ़ ले कांधो पर ,बादल ओढ़ ले बाँहों में 
तारो की तू मुस्कुराहटें सजा..

बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा ,चल बुलाये तुझे वो खुला आसमान 

तुझमे सागर एक समय हुआ 
कभी खुद की लहरो में गोते तो लगा 
चल   बह चल नदियों की तरह 
इन मचलती उमंगो का वेग बना 
बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा चल बुलाये तुझे वो खुला आसमान .....


            

Tuesday 5 May 2015

               

              मित्रता :पर्याय जीवन का 

उड़ने दे मन  तेरा पतंग बन आसमान में 
बांधूंगी न दुबारा उसे मैं झूठे अभिमान में
तोड़ ले चल फिर वो सपने चुपचाप ऊँची डाल के
दे दूँगी तुझको हिस्सा भी मेरा बस रख लेना तू सम्हाल के 
चुनले चलकर फिर रेत की ढेर से छुपे वो सीप  कई
मिलकर बनाते है चल एक रेत की दुनिया नयी
तू रूठा तो देख मैं खुद से रूठ जाउंगी 
फिर सोचती हूँ वो परियो की कहानियाँ किसे सुनाऊँगी 
चुप्पी तेरी डराती है ,मन दुखाती है,इतना जान ले   
नहीं आता मानना अब चल तू खुद ही मान ले 
वही मीठा सा फिर तू गीत कोई गुनगुना भी दे  
चल कर दे माफ़ मुझको,अब तो तू मुस्कुरा भी दे 

वंदना अग्निहोत्री 

Sunday 3 May 2015

                                          आशा ही जीवन है




नयी सुबह की प्रतीक्षा  में सो जाते है हम नींद के सीने में सर रख कर ,वो आशा ही तो है जो जागती है हमे हमारे गालो को सहला कर सूरज की  लालिमा के साथ हर दिन मुस्कुराते हुए.आशा हमारी सहज प्रकृति है और जो हमारे आस पास  उभर रहा है निराशा बन वह समय का उढ़ाया आवरण है बस ,जिसे हम जब चाहे दूर कर सकते है एक ओढ़ी हुई चादर की तरह खुद से . बस यही सीखने में एक जीवन गुजर जाता है मुठ्ठी  से फिसलती रेत की तरह ...........

एक और दिन बीता एक नयी सुबाह का सपना  संजोये
वो पूर्णिमा का चाँद भी कुछ जागे  तो कुछ सोये 
सोने नहीं देता वो एक चमक रहा जो  दूर में 
नन्हा सा सपना मेरा,जो टाका है आसमान में 

Vandana Agnihotri 

Friday 1 May 2015

कविता एक सुन्दर अनुभूति , जो हम सब जीते हैं हर सांस के साथ हमारे जीवन के हर अंश में, बस हम
उसे समझ नहीं पाते ,हर हिस्सा जीवन का एक पन्ना है जिसमे अलग अलग रसो से उभरती  है कुछ लकीरे  और उभर आती है एक कविता  कभी हसाती ,कभी रुलाती और कभी गुदगुदाती हुई .हमे बस  आवश्यकता है आँखे बंद कर उस उभरते अहसास को महससू करे और उत्तर जाने दें ज़िंदगी के  पन्नो पर खुद को एक  कविता की तरह, हर रस में डूबी हुई पंक्तियो के साथ ..............

ढल जाने दो  पन्नो पे छन्दो की  की तरह
उड़  जाने दो मन को परिंदो की तरह
फिर मन के आकाश पे फूटती है लालिमा
बह जाए जब ये मन  तरंगो की तरह

वंदना अग्निहोत्री