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Wednesday 30 September 2015




मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में ...

भर गया अहसास बन रूह की गहराइयों में 
मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में 

केनवस ये मन का रंग जाती है हलकी सी छुअन 
रंग जाता  है तेरे रंग में   बहता हुआ मेरा ये मन 

देख खूबसूरत बहुत है तेरी और मेरी दुनियाँ
बस तू है और मै हूँ और है तैरती हुई परछाइयाँ 

कौन कहता है शब्द ही बोलते है इठलाते हुए 
हाँ मैंने सुना है आज निःशब्दता को भी गाते हुए

संगीत की धुन कोई नज़ारो में है,बहती धारो में है 
समेटे है दर्द जो ,दो साथ चलते किनारो में है

भर गया अहसास बन रूह की गहरीयो में 
मौन सा संवाद कोई बह रहा पुरवाइयों में 

Monday 28 September 2015


ठहरी हुई झील सा  कभी रहता है 
झील की तरंगो में कभी कश्ती बन बहता है 
झील की गहराइयो सा कभी लगे 
हाँ मेरा ही मन मुझे  कभी अजनबी  सा लगे 

 हम तलाश में खुद की डूबते कभी उभरते हैं
किनारो की खोज में ,मंझधारो से कभी गुजरते है
 मिल ही जायेंगे खुद को,सब एक सिलसिला सा लगे 
हाँ मेरा ही मन मुझे  कभी अजनबी  सा लगे 



Wednesday 23 September 2015

झरोखे से झांकती सी यादें 

जाने किस ओर से आयी, पर आयी तो है
तेरी याद भी एक नशा है बस तेरी ही तरह

जितना डूबता हैं मन ,हम और उभर आते हैं
सुना है समुंदर भी गहरा है ,बस तेरी ही तरह 

मन के झरोखे खोल ,खो जाते हैं जब तन्हाइयो में
छू जाती है बेख़ौफ़, बन के हवा तेरी तरह 

अहसासों की छुअन है ,और सिमटते से हम है 
और इठलाती सी तेरी याद है बस तेरी ही तरह

जाने किस ओर से आयी, पर आयी तो है
तेरी याद भी एक नशा है बस तेरी ही तरह..

Friday 18 September 2015



चाँद ,हाँ  चाँद ही तो हो तुम 
प्यार की चंदनी बिखेरते से 
कभी नेह बरसाते ,कभी तरसाते 
लुक छिप जाते कभी बादलो की छाँव तले
कभी अहसाह तेरे, पूरनमासी में बदल जाते 

ढूंढते से रह  जाते है तुम्हे पलको की छीनी चादर के पीछे से
और पाते  है तारो के बीच ,कुछ इठलाते से ,गुनगुनाते से 
कभी रुठते ,कभी मनाते से ,
शीतलता से अपनी ,मेरी रूह को भिगाते  से

शीतल तेरी छाँव मालूम है फैली है दूर तलक
और निहारती पलके मेरी ,एक चकोर बन अपलक 
ठहर जाते है अहसास, जब प्यास बन आँखों में
छलक ही जाते है चकोर की  ,कोर से अमृत की तरह...


Saturday 12 September 2015

भर जाती है मन की गागर ज्यो ही 
छलक जाती हैं आँखें  जाने यूँ ही
हर आंसू हो दर्द में पगा जरुरी तो नहीं
खारा ही सही,पर कभी मिठास लिए होता है
ढलकता है पलकों से जब, कभी आस कभी गहरी प्यास लिए होता है
ओंस की बूंदो सा सहेज कर देखो ,जाने कितने अहसास लिए होता है

कभी यादों में छलके ,कभी वादो में छलके
कभी गिरते कभी सम्हलते इरादो में छलके 
कभी चाँद को भिगोये ,कभो तारो पे लुढ़क जाये   
आंसू बेबात कभी ,किनारो में छलके 
ढलकता है पलकों से जब, कभी आस कभी गहरी प्यास लिए होता है
ओंस की बूंदो सा सहेज कर देखो ,जाने कितने अहसास लिए होता है



Friday 11 September 2015



इंतज़ार

इंतज़ार ढल जाता है,
सुबह का, शाम बनकर
गहराती है जब लालिमा 
दूर क्षितिज पर ,मद्धम होती रौशनी में  
हाँ वही पर तभी दुबक जाता है 
मन के किसी कोने में ,ओढ़ कर अँधेरा
फिर एक सवेरा होने की चाहत लिए,इंतज़ार एक इंतज़ार बन 

पर रुकता  नहीं जीवन का फेरा 
फिर वो तेरा हो, या  हो मेरा 
जीवन तो चलता रहता है
रोज़ यू ही ढलता रहता है 
सुबह से शाम बन ,
रोज़ एक नयी सुबह का सपना संजोये 

सपने , हाँ सपने जो हम देखते है खुद के लिए
इक उम्र ज़िंदगी की,ढल जाने के बाद 
लगता यू है की ,की सपना ही सच है जिंदगी का 
और टांक देता है मन,आकाश में तारे बना सपनो को 
और शेष रह जाता है फिर इंतज़ार कुछ ऊंघता हुआ 
खड़ा हो जाता है हर नयी सुबह वह इंतज़ार, एक इंतज़ार बन.......



Tuesday 8 September 2015













सुनो सच कहते है हम...
The sound of silence 

सुनो सच कहते हैं हम
कभी कभी निःशब्दता भी बातें करती है 
ढेर सारी बातें ,वैसे ही जैसे मेरी खिड़की से झांकता 
वो  गुलमोहर ,इठला जाता है झूम कर 
जब निहारती देर तलक,मुस्कुराता है ,कभी गुनगुनाता है
कभी इतरारता सा नाचता है,हवाओ की छेड़खानी में मगन 
ढंग में अपने ,रंग में अपने, ले जाता जैसे  दूर कही संग में अपने 
और बिखर  जाता है वो चटक रंग मन के केनवस पे साधिकार मुझे रंगता हुआ 
सो जाता है फिर निःशब्दता ओढ़, चांदनी के पलने में वह गुलमोहर 
दूधिया चांदनी फूट पड़ती है, लालिमा बन छूकर उसको 
और रह जाती है फिर एक निःशब्दता ,बातें करती हुई 
चांदनी और मेरे बीच देर तक ,कौन कहता है अकेले हैं हम
बातें करती हर सय नज़र आती है ,सुनो सच कहते हैं हम
कभी कभी निःशब्दता भी बातें करती है 
ढेर सारी बातें ,सुनो सच कहते हैं हम 
धड़कनो की लय के साथ बतियाया है कभी 
कभी सुनना ,निःशब्दता भी बातें करती है .....

Sunday 6 September 2015


कभी महसूस किया है ,फूलो की छुअन
हौले से टकराते उनके मुलायम से अहसाह को
वह रंगो का चटक अंदाज़ ,कहता क्या है सुनो कभी

सुना है ,हौले से पंखुड़ियों का खिलना
कुछ सकुचाते कुछ इठलाते संगीत का हवा में घुलना
मद्धम सी सांसो की लय पे नाचता है जैसे
हर सुबह ,हर फूल  का वो चमन में खिलना

हाँ मैंने महसूस किया है ,उस हवा को
उस बयार को ,गुंजन के उस प्यार को
कलियों से उनके मनुहार को ,
हाँ किया है महसूस मैंने ,चमन से आती हर एक बयार को
सिमट जाता है मन ,सपना लिए खुलते फूलो को निहारने की आस लिए



Friday 4 September 2015


कृष्ण  कृष्ण कृष्ण ..
कृष्ण के प्रेम में जिस दिन कृष्ण हो जाऊं उस दिन जीवन सफल ,बहुत कठिन है डगर पनघट की पर कृष्ण प्रेम उससे ज्यादा प्रबल हो आज के दिन यही प्रार्थना है मेरे कृष्ण से ...

तू चोर भी है ,पर चितचोर भी 
इस ओर कभी उस ओर भी है 
ढूंढे से मिलता नहीं क्यों ,
छिपता है पर चहुंओर भी है 
तैरता है जो नैनो में नीर
उठती है जो मन में पीर 
बसता है तू उसमे भी 
तू  राधा की धीर में है 
खेले आँख मिचौली नटखट
इस धड़कन से उस पनघट तक 
मेरे गीत में है  ,संगीत में है
जीवन की हर रीत में है
खिलखिलाहटों में बसता है तू ही
मेरी हार में तू ,मेरी जीत में है 
छुपता है पर छुपेगा कब तक 
हर स्वासो से निःश्वासो के बीच
बंधी हुई हर रीत में है 

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें