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Wednesday 27 July 2016



एक शाम चर्चा ,एक शाम से ...


आज पलटे जब जीवन के पन्ने कुछ
एक शाम साथ चली आयी मेरे 
कुछ नहीं चन्द बातो और चाय की चुस्कियो के बीच पूछा मैंने
याद है तुम्हे
जिस रोज़ तुम जीवन में आयी  थी
कुछ मद्धम सी रौशनी ,कुछ हलकी सी पुरवाई थी
हौले से मुझको जैसे छुआ था तुमने 
घुल गयी थी मेरी साँसों में 
अब तक महकती हो वैसी ही मेरे अहसासों में 
महसूस होता है अब तक, मचलती लहरो का लहरो में खो जाना
विशाल  उस सागर में लिपटकर ,लहरो का जैसे सो जाना 
हाँ याद है मुझको 
जिस रोज़ तुम जीवन में आयी  थी
कुछ मद्धम सी रौशनी ,कुछ हलकी सी पुरवाई थी
पन्नो पे इस तरह अंकित और एक शाम हुई 
कुछ नहीं चन्द बातें और चाय की चुस्कियो के बीच 
पलटे थे कुछ पन्ने मैंने 
पन्ने कुछ जीवन के ....

Saturday 23 July 2016







मैं खुद के लिए लिखती हूँ ,उस खुदा के लिए लिखती हूँ
एक खूबसूरत सा हिस्सा मेरा ,रह गया था किसी मोड़ पर
बस यूँ समझिये, उस गुमशुदा के लिए लिखती हूँ

खूबसूरत सी बनाई है ये दुनिया किसी ने
उस बादल, उस दरिया, उस हवा के लिए लिखती हूँ
बस यूँ समझिये, उस गुमशुदा के लिए लिखती हूँ

मदमस्त बहती है मतवाली नदियां जो झूमकर बरसती है काली बदरियां जो
इस गाती ,इस झूमती मदमस्त फ़िज़ा के लिए लिखती हूँ
बस यूँ समझिये, उस गुमशुदा के लिए लिखती हूँ

Friday 22 July 2016






कुछ लोग निराले होते है
तपती भीषण जलती   गर्मी में
अमलताश का भाव लिए
लाल फूलो से झुके गुलमोहर सा
एक शीतल घनेरी छांव लिए
ठहरी हुई गहरी झील से
कभी प्यार भरी, नदी सा बहाव लिए
कुछ लोग निराले होते है

Tuesday 19 July 2016





As you begin to walk out on the way

The way appears.

~ Rumi




चल पड़े हैं अब ,तेरी राह में ये ज़िंदगी 
मंज़िल मिल ही जाएगी ,रास्तो की तलाश में

हर मोड़ से झांकते है, वक़्त की मेहराब पे टंगे सपने 
बस ये मोड़ ही आखिरी होगा ,चलते है इस आस में ....

Thursday 14 July 2016






 एक गुजारिश ढलते दिन से

ये  सुबह  मेरी  ज़िंदगी की ,इससे पहले की दिन ढल जाए और शाम अपनी बाहें फैलाए
थके हुए सब पंक्षी ,करें गमन नीड की ओर
कुछ थम जा, भर लून आँचल में उजाला तेरा
अँधेरी रातो में होगा जो साथ मेरे
उन टिमटिमाते सितारों की तरह
हाँ ,कह दूंगी आसमान से तब मै
एक आकाश मेरा भी है जगमगाता है जो तेरी ही तरह..
ये  सुबह  मेरी  ज़िंदगी की ,इससे पहले की दिन ढल जाए और शाम अपनी बाहें फैलाए
कुछ थम जा ...

Monday 11 July 2016




टुकड़े भर बादल ,टुकड़े भर धूप है....

कुछ टुकड़े बादल ,कुछ टुकड़े भर धूप है
जीवन का हर दिन ,बदलता सा रूप है 
जिस पल जो मिले, है दोस्ती का वादा 
चल बाँट ले मिलकर ,क्यों न हम आधा आधा 

एक तुडका धूप तेरी, सर्द मौसम में गुदगुदाएगी 
तपती दुपहरी में कभी ,मेरी बारिश तुझे भिगाएगि
जिस पल जो रहे ,इस मौसम का इरादा 
चल बाँट ले मिलकर ,क्यों न हम आधा आधा 

कुछ टुकड़े बादल ,कुछ टुकड़े भर धूप है
जीवन का हर दिन ,बदलता सा रूप है ...

Friday 8 July 2016

अंत से आरम्भ तक ...


फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

हर अंत के बाद नयी  शुरुआत लिखी होती है
हर अमावस के बाद पूनम की रात लिखी 
कड़ी धूप में जब जलती है ये वसुंधरा 
तब किस्मत में उसके  झूमती बरसात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

कौन देता है देखो उगते सूरज को लाली
पक्षियों का ये कलरव, ये भोर निराली 
थाम  ले बढ़कर तू  हाथ उसी का 
जिसने इस सुंदर दुनिया की सौगात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है ...










अंत से आरम्भ तक ...


फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

हर अंत के बाद नयी  शुरुआत लिखी होती है
हर अमावस के बाद पूनम की रात लिखी 
कड़ी धूप में जब जलती है ये वसुंधरा 
तब किस्मत में उसके  झूमती बरसात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

कौन देता है देखो उगते सूरज को लाली
पक्षियों का ये कलरव, ये भोर निराली 
थाम  ले बढ़कर तू  हाथ उसी का 
जिसने इस सूंदर दुनिया की सौगात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है ...










Monday 4 July 2016




ज़िंदगी का हाथ थामे, भीगी इस रात की गोद में
मलमली सपने ओठ सो जाएँ,
खो जाये ,खुद को एक बार फिर पाने के लिए 
कल आएगी न मुस्कुराती सुबह हमे उठाने के लिए .....

हलकी गिरती फुहारों के  शुभरात्रि दोस्तों ....

Friday 1 July 2016



हे ईश्वर मेरे ...

देखा है बहुत करीब से तुझे, तेरे अहसास को आसपास अपने 
उस मचलते सागर के ह्रदय में जो ठहराव सा है वो क्या है,तुम ही हो 
उस उमड़ते बादल के सीने से फूटती जलधारा में बस तुम ही हो 
हाँ  वो तुम ही हो ,गहरे बहुत गहरे समाये हुए कण कण में 
इस सुंदर  धरा से उस विशाल फैले नील गगन में 

देखा है बहुत करीब से तुझे, तेरे अहसास को आसपास अपने 
जैसे एक लम्बी तलाश को ,बैचैन करती प्यास को मिल जाती है आस कोई 
वैसे ही समाये हो थिरकती लहरों के स्पंदन में, सागर की गहराई बन 
नाच उठते हो थिरकती बूंदों में, अद्भुत  सतरंगी परछाई बन 
हाँ  वो तुम ही हो ,गहरे बहुत गहरे सागर में छुपी असीम शांति का अहसास लिए 

देखा है बहुत करीब से तुझे, तेरे अहसास को आसपास अपने 
ये ईश्वर मेरे .....