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Monday 2 October 2017





ठहरे  हुए आज में स्थिर सा एक मन
इन लहरों के स्पंदन में डोलती कश्ती सा
पीछे छूटते पड़ाव और आगे के गंतव्य से मुक्त
उन्मुक्त अपने आज को स्वयं में समेटे
जीता जीवन का एक एक पल
हर पल में हो जैसे विसर्जित कल, आज और कल
महसूसता इस कश्ती सा हर लहर की हलचल
ठहरे हुए आज में स्थिर सा एक मन