Wednesday 25 January 2017
Tuesday 24 January 2017
बच्चे हमारी जीवन बगिया में खिले सूंदर और अद्भुत फूल.क्या सोचा है हमने की किस तरह का वातावरण ,किस तरह की खाद और किस तरह के पानी से सिंचित कर रहे हैं हम इन फूलो को जिन्हें बड़े ही जतन से हमने अपनी बगिया में उगाया है.
बच्चो के प्रथम गुरु माता पिता और पहली पाठशाला उनका अपना घर और परिवार होता है जिनके बीच वह खेलते कूदते हुए सीखते, सम्हलते हुए बड़े होते हैं. जिस तरह का आचरण वो अपने आस पास देखते हैं वही उनके मन के दर्पण पे अंकित होता जाता है.अतः आवश्यकता है हमे इस बात का ध्यान रखने की, कि हम उनके मन के दर्पण में दुनिया की, परिवार की, दोस्तों की ,व्यव्हार की किस तरह कि छबि अंकित कर रहे है ......
तुमसे जाना सूरज भैया और चंद मेरा मामा है
माँ बाबा का हाथ पकड़ ही मैंने चलना जाना है
चिड़िया जो फुदकती जाना, गाती वो एक गाना है
मन के तारो की सरगम ,बस तुमको ही बजाना है
दे दो जैसा रूप ,ढल जाऊँ मैं वैसे है
कच्ची माटी रच लेती सुन्दर दुनिया जैसे है
संस्कारो से रंगों मुझे या कर दो बेरंग मुझे
तुम्हारे ही पदचिन्हों में चलना है संग मुझे
तुमसे जाना सूरज भैया और चंद मेरा मामा है
माँ बाबा का हाथ पकड़ ही मैंने चलना जाना है
बच्चो के प्रथम गुरु माता पिता और पहली पाठशाला उनका अपना घर और परिवार होता है जिनके बीच वह खेलते कूदते हुए सीखते, सम्हलते हुए बड़े होते हैं. जिस तरह का आचरण वो अपने आस पास देखते हैं वही उनके मन के दर्पण पे अंकित होता जाता है.अतः आवश्यकता है हमे इस बात का ध्यान रखने की, कि हम उनके मन के दर्पण में दुनिया की, परिवार की, दोस्तों की ,व्यव्हार की किस तरह कि छबि अंकित कर रहे है ......
तुमसे जाना सूरज भैया और चंद मेरा मामा है
माँ बाबा का हाथ पकड़ ही मैंने चलना जाना है
चिड़िया जो फुदकती जाना, गाती वो एक गाना है
मन के तारो की सरगम ,बस तुमको ही बजाना है
दे दो जैसा रूप ,ढल जाऊँ मैं वैसे है
कच्ची माटी रच लेती सुन्दर दुनिया जैसे है
संस्कारो से रंगों मुझे या कर दो बेरंग मुझे
तुम्हारे ही पदचिन्हों में चलना है संग मुझे
तुमसे जाना सूरज भैया और चंद मेरा मामा है
माँ बाबा का हाथ पकड़ ही मैंने चलना जाना है
Sunday 15 January 2017
वह रास्ता खड़ा वहीँ..
रात के अंधियारे में गुम है ,पर रास्ता है खड़ा वहीँ
कुछ उलझे सुलझे विचारो में गुम है, पर रास्ता है खड़ा वहीँ
ढूंढते है हम जिसे, इधर उधर बस उम्र भर
मन में गढ़ी दीवारों में गुम हैं ,पर रास्ता है खड़ा वहीँ
बस खोल दो झरोखे मन के ,कुछ उजाला जाने दो
अंदर के हर कोने को, कुछ उजला हो जाने दो
दीवारों से झांकता तभी, दिखेगा तुम्हे वहीँ
पुकारता तुम्हे प्यार से ,वह रास्ता खड़ा वहीँ...
Friday 13 January 2017
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
धुंध की चादर लपेटे गुनगुनी उस धुप ने
जो कहा हवाओं से वो गीत गाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
पलाश को तलाश जिसकी ,गुलमोहर को आस जिसकी
बसंत की बयार सा क्यों रस बहाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
बसंत की बयार सा क्यों रस बहाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
आसमां का हाथ थामे ,आसमां के पार तक
सतरंगी रंगो में क्यों बिखर जाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
सतरंगी रंगो में क्यों बिखर जाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
सागर में मचलती उन लहरो सा मौज़ ले
सागर में जीवन सरिता मिलाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
सागर में जीवन सरिता मिलाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
धुंध की चादर लपेटे गुनगुनी उस धुप ने
जो कहा हवाओं से वो गीत गाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
मन जलतरंग सा क्यों गुनगुनाना चाहता है
Sunday 8 January 2017
कुछ पंक्तियाँ इस तस्वीर पर ....
आसमान से उतर कर ह्रदय की गहराइयो में समाती है
अद्द्भुत एक अनुभूति है प्रेम, नैनो में सपने दे जाती है
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सिमट जाता है पूरा संसार जैसे मेरी बाहों में
जब तुम घनश्याम ले लेते हो अपनी पनाहो में
रोम रोम जैसे तेरा ही गीत गाता है
जब मधुर मुस्कान लिए तू पास मेरे आता है
पलकों पे बैठ जाते है सतरंगी सपने कई
जब पलके मूंद तू धुन कोई बजाता है
कुछ कुछ राधा सी कुछ श्याम सी है
कुछ कुछ उजियारी कुछ घनश्याम सी है
प्रीत की रीत है बड़ी अलबेली ,अटपटी
तपती धूप में, तरुवर से मिलतेआराम सी है
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