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Sunday 7 May 2017




सफर ज़िंदगी का ...

मन के कोने में छुपे शब्द कई
आतुर से हैं कुछ ,व्याकुल से हैं
संवेदनाओं की लहरें बेकल सी हैं कभी चंचल सी हैं
गहराइयों में मन की उठी हलचल बेनाम हैं
आभाषित और परिभाषित के बीच जो एहसास हैं
उसे आस कहूँ या प्यास कहूँ या
बरसते हुए लम्हों को समेटने का प्रयास कहूँ
ज़िंदगी के साथ अटखेलियाँ हैं चल रही
सखियों सा हाथ थामे साथ मेरे वो चल रही
रास्तो के साथ मुड़ जा रास्तो से प्यार कर
 हर पड़ाव में एक ज़िंदगी करती है बसर
 जीने का सलीका लो खुद सीखा रही है ज़िंदगी
परिभाषाओ की परिधि के पार जा रही है ज़िंदगी
कतरा कतरा वक़्त से चुरा रही है ज़िन्दगी
हर साँस के साथ आ रही कभी जा रही है ज़िंदगी
बह चले हैं शब्द सभी पन्नो पर लहरो की तरह
एक नयी आस में एक नयी तलाश में प्यास लिए जीने की .....

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