ठहरे हुए आज में स्थिर सा एक मन
इन लहरों के स्पंदन में डोलती कश्ती सा
पीछे छूटते पड़ाव और आगे के गंतव्य से मुक्त
उन्मुक्त अपने आज को स्वयं में समेटे
जीता जीवन का एक एक पल
हर पल में हो जैसे विसर्जित कल, आज और कल
महसूसता इस कश्ती सा हर लहर की हलचल
ठहरे हुए आज में स्थिर सा एक मन
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