वसुंधरा की धुन...
चल दिए सब परिंदे नीड़ की राह में
थम गयी है शाम फिर एक सुबह की चाह में
थक कर हर परिंदो को फिर घरोंदो में सोना है
धुन्धलकी शाम को मिला चांदनी बिछोना है
चाँद फिर मन में शरगम कोई गा रहा
मोड़ पे खड़ा देखो गुलमोहर फिर मुस्कुरा रहा
सुबह फिर देखो एक तलाश लेकर आएगी
जीवन की धुन हर सांस फिर गुनगुनायेगी
हर रात को फिर एक दिन में खोना है
हर दिन का अपना कु छहँसना कुछ रोना है
हर अँधेरा कुछ रौशनी की तलाश में गा रहा
मोड़ पर खड़ा देखो पलास गुनगुना रहा
प्रकृति हर पल धुन नया सुना रही
बरखा की चाहमें लो दूर टिटहरी गा रही
आज बादलो की ज़िद है उमड़ कर नहीं खोना है
खुल कर आज प्यासी वसुंधरा को भिगोना है
संगीत धरा का हर अंश अंश सुना रहा
मोड़ पर खड़ा देखो कदम्ब झूमा जा रहा
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