Pages

Wednesday 10 June 2015


और वो अचानक बड़ी हो गयीं ....

अब सोचती हूँ तो पाती  हूँ ये 
तुम, हाँ तुम  ही तो हो जो साथ थे तब भी 
जब कोई अटखेलियां बालों  पे महससू होती थी
कुछ हलकी सी छुअन जो गालो पे महसूस होती थी
बादलो की ओट से  वह चाँद बन झाँकता कोई 
डालियों में सजे उस मोंगरे से तकता कोई
दूर मँदिरो की घंटियों में पुकारते से तुम ही तो थे
तुम ही  थे आईने में मेरी नज़रे उतारते से तुम ही तो थे
वो इठलाती फुदकती थी पंछियो के साथ जब
झलकते थे मेरी खिलखिलाहटों में मेरे  साथ तब 
नाम क्या दूँ तुम्हे, बस अहसाह हो 
कहीं  भी नहीं ,फिर भी आस पास  हो
जाने  किस मोड़ पे छोड़  दिया इन  अहसासों  ने  साथ मेरा  
दुनिया  ने  बना  दिया उम्र  से पहले  मुझे  बड़ा 
और  तुम  भी नहीं थे तब जो नज़रे उतारते मेरी 
खो  गयीं वो अटखेलियां ,वो चाँद से गप्पे लड़ाना  
वो मोंगरे की महक , वो चिड़ियों के संग चहचहाना   
क्योकि मै अचानक बड़ी हो गयीं 
अपने सपनो की एक लम्बी फेहरिस्त को 
अपनी डायरी में दबा कर चल पड़ी थी अनजान दुनियाँ में 
अपने सपने तलाशते हुए ,दिशाविहीन सी  मै
और मुझमें मै बन कर कही छुप गए तुम, ऐ अहसास मेरे 
जिसकी आज तक तलाश है  मुझे ज़िंदगी की तरह, जीने के लिए ..........







No comments:

Post a Comment