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Monday 1 June 2015


जब हम प्रकृति के निकट होते है तो स्वयं के और निकट आ जाते हैं.हर तरफ फैली सुंदरता मन को और सुन्दर , शांत ,संवेदनशील बना देती है और हम तब अपने स्वाभाविक रूप में पहुंच जाते है .ऐसा ही कुछ अनुभव मैंने किया मनाली की सुन्दर पहाड़ियों में पहुंच कर. हर तरफ कितनी सौम्यता ,सुंदरता और प्रेम बरस रहा था प्रकृति का और बर्फ से ढकी चोटियों पर पड़ती सूरज की रोशनी जैसे अपने प्रियतम के सानिध्य में खिल उठा हो रूप और भी निखरता हुआ उन पहाड़ियों का .एक अद्भुत अहसास था हवाओ में ,जैसे संगीत चल रहा हो जीवन का और उसकी धुन पे नाच रहीं हो वहाँ की पहाड़ियाँ ,नदियाँ, झरने ,पगडंडियां और मन मंत्रमुग्ध सा है अब तक स्वयं को खोजता हुआ सा ..... 



कुछ पल गुनगुनाते हुए 



प्रकृति की गोद में कुछ हसते कुछ गाते पल 
बिताये हैं मैंने  किसी धुन में गुनगुनाते पल
हवाओ की सर सर ,वह झरनो का कल कल 
रिमझिम फुहारों से भीगा, कुछ ठिठुरा हर पल
बिताये हैं मैंने  किसी धुन में गुनगुनाते पल
बहती है मौज में इठलाती, उन नदियों की हलचल 
मन बहता रहा एक लहर बन मौजों सा चंचल 
बिताये हैं मैंने  किसी  धुन में गुनगुनाते पल
एक प्रतिध्वनि की चाह में बीतता रहा कल 
आज गूंजती है पहाड़ो से खुद की आवाज़ हर पल 
बिताये हैं मैंने  किसी धुन में गुनगुनाते पल....

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