हाँ ये पल,जादुई सा ये पल..
सोचती हूँ क्या है इस सुन्दर से ,जादुई से पल में
पाती हूँ बस दूर तलक फैला अथाह सा ये पल
कितनी गहराई लिए ,सतरंगी किरणों में नहाया सा
हाँ इसी में हो जैसे ,सारा ब्रम्हांड समाया सा
ये धरती ये ,ये नीलगगन ,ये समंदर का खारापन
ये सुनहरा पिघलता सूरज,ये सागर का मचलता नीलापन
कुछ रौशनी कुछ अँधेरा लिए,कई बदल घनेरा लिए
कुछ चढ़ती रात,कुछ ढलता सबेरा लिए
हाँ ये पल ,जादुई सा पल ,मुझमे यूँ रमा रहा
पूरा अनंत जैसे ,दूर क्षितिज में समां रहा
सोचती हूँ क्या है इस सुन्दर से ,जादुई से पल में
हाँ ये पल,जादुई सा ये पल..
उत्तम
ReplyDelete