Pages

Thursday 31 March 2016





फिर एक चिराग जला लो ...

लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
कुछ  दिल के अरमान जला लो



अँधेरे में लिपटी सी इस रात को
एक मद्धम सी  रोशनी काफी है
आसमान में खुलती खिड़कियों को
बस एक थमीं सी जमीन काफी है

लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
कुछ दिल के अरमान जला लो

झरोखे से टपकती है वह शीतल सी चांदनी
ओढ़ कर इसको चलो खुद में समां लो
वो सींके पे टंगा कोई सपना टिमटिमाता मेरा 
चिराग के लौ से उसकी ताल फिर  मिला लो 


लो चल पड़ी है रात फिर
फिर एक चिराग जला लो
कुछ टुकड़े चाँद से चुरा लो और
दिल के कुछ अरमान जला लो







No comments:

Post a Comment