सोंधी सी महक ज़िंदगी की .....
ऐ ज़िंदगी जब भी पलटा कोई पन्ना तेरा
कोई भीनी सी महक से भीगता सा है मन मेरा
कुछ यादो की महक, कुछ इरादों की महक
किसी पन्ने से टपकती है ,खुद से किये वादों की महक
कहीं किसी हासिये पे ,दर्ज़ तारीखों की फेहरिस्त
तो कही चुपके से झांकती दबी चाहतो की फेहरिस्त
किसी पन्ने पे मुस्कुराती सी , वो आखिरी लकीर
जैसे खींची हो वक़्त ने ,कोई मनचाही सी तस्वीर
वो बड़े प्यार से उकेरा हुआ ,कोई लम्हा पुकारता सा
वो कहीं खामोश सा उदास ,कोई पल निहारता सा
हर पन्ना गुजर जाता है लो, वक़्त का हस्ताक्षर लिए
हासिये पे खड़े सोचते हम ,क्या ये सब लम्हे हमने जिए
और तोड़ती है जैसे ,गहरी तन्द्रा मेरी
वही एक भीनी सी , बड़ी अपनी सी महक तेरी
लो जुड़ गया आज का एक और नया पन्ना तुझमे
कोई सोंधी सी महक ,जगाता सा मुझमे ................ऐ ज़िंदगी
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