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Tuesday 5 April 2016



खोये कहाँ थे रूठे हुए वो शब्द मेरे
सितारों की चादर तले ,चांदनी लिबास में
मिल गए टिमटिमाते जुगनुओ से
मुस्कुराते हुए ,फिर वो शब्द मेरे

बिखरी हुई कुछ पंक्तियाँ तकती रही
अधूरी कई कहानियां मौन सी जगती रही
खोती रही हो जैसे ,अर्थ सा ये लेखनी
पन्नो को सजाते लो खिल गए ,फिर शब्द मेरे

संग जिनके नापी थी ,दूरियां आसमान की
उतारी थी कहानियां संग पंछियो के उड़ान की
मिटटी की भीनी सुआस लिए रिमझिम फुहार से
भीगे हुए अहसास लिए मिल गए फिर शब्द

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