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Monday 18 April 2016





दुनिया अनोखी सी...

जाने किस दुनिया में पलती है
कुछ तेरे भीतर, कुछ मेरे अंदर चलती है

दूर इस दुनिया से, एक दुनिया अनोखी सी
जीवन से लबरेज़ ,जीवन बन ढलती है 

न सपनो के पास ,ना हकीकत के करीब
कुछ अधखुली नींद सी, आँखों में मचलती है 

समय की परिधि पे टंगी  ,उस खिड़की के पार
दूर उस क्षितिज पर ,लालिमा बन उभरती है 

दूर इस दुनिया से, एक दुनिया अनोखी सी
जीवन से लबरेज़ ,जीवन बन ढलती है 

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