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Tuesday 19 May 2015

           जीवनसाथी मेरे


जाने क्यों मेरे सपने तेरी आँखों में दिखाई देतें  हैं 
क्यों तेरी धड़कन मेरे दिल में सुनायी देती है  
ये  मौन  सा  संगीत  क्यों  घेरे  है  हमें   
चुप्पी इस हवा की  क्या  गा  रही  है 
छूकर तुझे जो आती है बयार शरारती  
मेरे बालो को जैसे  छेड़े जा रही है  
भर चूका है अंर्तमन में जाने कौन सा अहसाह 
हर सांस के साथ मुझे गुदगुदाता हुआ  
बस सो  जाऊं एक गहरी नींद में लगता है   
तेरे  कंधो  पे  रख  कर  सर  अपना  मेरे  साथी 
मंज़िल की राह  में क्या तुम  ये एक पड़ाव दोगे   
तपती धूप का मौसम  है  क्या थोड़ी छाँव दोगे 
देखो दूर वो खड़ा पेड़ बुलाता हैं हमको     
चल   छाँव में  उसकी  खो  जाएँ  ,
एक हो जाएँ एक दूसरे का साया बन जीवनसाथी  मेरे....



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