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Sunday 4 September 2016




एक रास्ता उस चाँद तक...

एक रास्ता कुछ थमता, कुछ चलता सा
 कभी गिरता, कभी सम्हलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक

क्यों होता बैचैन मन 
गिरह  अब तू खोल मन
कभी बहता, कभी जमता सा 
दूर क्षितिज में पिघलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक 

धूप छांव से हैं रास्ते
एक पड़ाव से है रास्ते 
साया जो तेरे साथ है 
हर मंज़िल है तेरे वास्ते 
प्रतिध्वनियों में मचलता सा 
जाता तो है चाँद तक 
उस नीले आसमान तक 

एक रास्ता कुछ थमता, कुछ चलता सा
 कभी गिरता, कभी सम्हलता सा 
जाता तो है उस चाँद तक 
उस नीले आसमान तक

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