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Thursday 29 September 2016



अनुगूँज ..
शब्दों से परे कुछ लम्हे ,कुछ रिश्ते ,कुछ अंश जीवन के
परिभाषाओ की परिधि से परे ,कुछ सच खड़े है मुस्कुराते हुए
बादल का वसुंधरा से नाता देता है नित नया अंकुरण
और धरती तपन से तृप्ति की राह में ओढ़ लेती है धानी चुनर
लहरो का सागर में उमड़ना,फिर सिमट सागर हो जाना
कौन ढूंढता शब्दों को ,जब मन भाये लहरो का गुनगुनाना
भीगती धरती ,उमड़ती लहरे और और चाँद मुस्कुरा रहा
जाने किसकी याद में ,लो दूर पपीहा भी गा रहा
और खड़ी परछाई ने जैसे सच सा कोई पा लिया
तन के आगोश में उसने, खुद को फिर समां लिया
जाने दूर से कहीं आते शब्द गूंज उठे इस तरह
सूरज आता जाता है ,परछाई तो साथ है एक अनुगूँज की तरह......
Vandana Agnihotri

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