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Wednesday 7 September 2016









कुछ भाव समर्पण के ...

कितना व्यापक है आकाश ,
दूर तक पूरी दुनिया खुद में समेटे हुए
हर  शय को दुनिया की प्राण देते हुए 
बस ऐसे ही होते हैं कुछ आयाम जीवन के
खुले उम्मुक्त आसमान सी व्यापकता लेते हुए
संकुचित किसी भी दायरे से परे
बस ,मन वह आकाश हो रहा है 
नैनो का निर्झर ,हर मैल धो रहा है 
हे ईश्वर तुझे शूल नहीं ,फूल चढ़ाने हैं 
मन के इस मंदिर में  ,बस दीप जलाने है 
तिमिर मेरा ,तेरे उजाले में नहायेगा 
वह दिन जीवन में  ,जरूर आएगा 
बस प्रेम तेरा मुझमे, प्राण बन बहने दे
अब तो शरण में तेरी ,यूँ ही रहने दे ...



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