गुलमोहर मेरा ...
शीतल सी छाँव तेरी और उसपे झूमकर मुस्कुराना तेरा
हर पथिक को अहसास यूँ घर का का दे जाना तेरा
वह लहराते हुए लबरेज़ फूलों से झुक जाना तेरा
धूप में भटके मन को एक ठहराव सा दे जाना तेरा
सच ही है ईश्वर जाने किस किस रूप में आता है
कभी आकाश की मेहराब से झांकता चाँद बन मुस्कुराता है
कभी मेरे गुलमोहर सा मदमस्त मगन लहराता है
हाँ गाता है साथ मेरे ,मन में कोई गीत बन उभर आता है
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