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Wednesday 27 July 2016



एक शाम चर्चा ,एक शाम से ...


आज पलटे जब जीवन के पन्ने कुछ
एक शाम साथ चली आयी मेरे 
कुछ नहीं चन्द बातो और चाय की चुस्कियो के बीच पूछा मैंने
याद है तुम्हे
जिस रोज़ तुम जीवन में आयी  थी
कुछ मद्धम सी रौशनी ,कुछ हलकी सी पुरवाई थी
हौले से मुझको जैसे छुआ था तुमने 
घुल गयी थी मेरी साँसों में 
अब तक महकती हो वैसी ही मेरे अहसासों में 
महसूस होता है अब तक, मचलती लहरो का लहरो में खो जाना
विशाल  उस सागर में लिपटकर ,लहरो का जैसे सो जाना 
हाँ याद है मुझको 
जिस रोज़ तुम जीवन में आयी  थी
कुछ मद्धम सी रौशनी ,कुछ हलकी सी पुरवाई थी
पन्नो पे इस तरह अंकित और एक शाम हुई 
कुछ नहीं चन्द बातें और चाय की चुस्कियो के बीच 
पलटे थे कुछ पन्ने मैंने 
पन्ने कुछ जीवन के ....

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