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Friday 8 July 2016

अंत से आरम्भ तक ...


फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

हर अंत के बाद नयी  शुरुआत लिखी होती है
हर अमावस के बाद पूनम की रात लिखी 
कड़ी धूप में जब जलती है ये वसुंधरा 
तब किस्मत में उसके  झूमती बरसात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है 

कौन देता है देखो उगते सूरज को लाली
पक्षियों का ये कलरव, ये भोर निराली 
थाम  ले बढ़कर तू  हाथ उसी का 
जिसने इस सुंदर दुनिया की सौगात लिखी होती है 

फूटती हुई नन्ही कोपलों पे ठहरी हुई पानी की बूँद कोई
कानो में उनके  हौले से कुछ कह जाती है 
जैसे आशाओ का नया गीत कोई सुनती है ...










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