आशा ही जीवन है
नयी सुबह की प्रतीक्षा में सो जाते है हम नींद के सीने में सर रख कर ,वो आशा ही तो है जो जागती है हमे हमारे गालो को सहला कर सूरज की लालिमा के साथ हर दिन मुस्कुराते हुए.आशा हमारी सहज प्रकृति है और जो हमारे आस पास उभर रहा है निराशा बन वह समय का उढ़ाया आवरण है बस ,जिसे हम जब चाहे दूर कर सकते है एक ओढ़ी हुई चादर की तरह खुद से . बस यही सीखने में एक जीवन गुजर जाता है मुठ्ठी से फिसलती रेत की तरह ...........
एक और दिन बीता एक नयी सुबाह का सपना संजोये
वो पूर्णिमा का चाँद भी कुछ जागे तो कुछ सोये
सोने नहीं देता वो एक चमक रहा जो दूर में
नन्हा सा सपना मेरा,जो टाका है आसमान में
Vandana Agnihotri
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