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Tuesday 5 May 2015

               

              मित्रता :पर्याय जीवन का 

उड़ने दे मन  तेरा पतंग बन आसमान में 
बांधूंगी न दुबारा उसे मैं झूठे अभिमान में
तोड़ ले चल फिर वो सपने चुपचाप ऊँची डाल के
दे दूँगी तुझको हिस्सा भी मेरा बस रख लेना तू सम्हाल के 
चुनले चलकर फिर रेत की ढेर से छुपे वो सीप  कई
मिलकर बनाते है चल एक रेत की दुनिया नयी
तू रूठा तो देख मैं खुद से रूठ जाउंगी 
फिर सोचती हूँ वो परियो की कहानियाँ किसे सुनाऊँगी 
चुप्पी तेरी डराती है ,मन दुखाती है,इतना जान ले   
नहीं आता मानना अब चल तू खुद ही मान ले 
वही मीठा सा फिर तू गीत कोई गुनगुना भी दे  
चल कर दे माफ़ मुझको,अब तो तू मुस्कुरा भी दे 

वंदना अग्निहोत्री 

3 comments:

  1. Replies
    1. Abhar upasna ji ..aapka sneh prerna dega meri lekhani ko...

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    2. Abhar upasna ji ..aapka sneh prerna dega meri lekhani ko...

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