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Friday 8 May 2015



 स्वतंत्रता : एक खोज 

स्वतंत्रता , हमारे मन के बहुत ही गहरे छुपा एक भाव जो उतना ही सत्य है ,सार्थक है जितना हमारा अस्तित्व .मन की गहराइयो में हम सब यही तो चाहते है ,स्वतंत्र होना ,अपने ही बनायें वैचारिक मापदंड से ,अपने अंदर की बैचैनी से .अपनी बाहर की  ज़िंदगी  में कही अंदर स्वयं को छुपा रखा है जो, उस व्यक्तित्व की स्वतंत्रता .हमने स्वयं की असीम क्षमता को बांध रखा है अपनी सोच के दायरे में ,उसका गलत आकलन करके.जब हम धीरे धीरे स्वयं के करीब जाते है ,तब कभी अहसास कर पाते हैं अपने  अंदर छुपे उस सागर का जिसमे जाने कितने मोती भरे पड़े हैं , और वो पहला कदम होता है अपने अंदर के "मै" को ढूंढने की ओर और  जब फूटता है उस "मै" का अंकुर मन की  धरातल पर तब आरम्भ होता है एक जीवन का जो एक फलदार मज़बूत घने वृक्ष सा खड़ा होता है ,जिसके सानिध्य में मिलती है लोगो को उसके प्रेम की शीतल छाया , मुस्कुराहटों  के फूल और अपनेपन के  मीठे फल.
           इस दुनिया की भीड़ में जब हम खुद को ढूंढ लेते है उस दिन से खुशियो को हमारी खोज होती है.क्या हमने पहला कदम बढ़ाया है स्वतंत्रता की ओर ? आपकी तरह मै भी प्रयासरत हूँ .............
    
बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा चल ,बुलाये तुझे वो खुला आसमान 
दीवारो की खुटी पे टांगे थे जिन सपनो को
अब तू उनको  आवाज़ लगा 
चांदनी ओढ़ ले कांधो पर ,बादल ओढ़ ले बाँहों में 
तारो की तू मुस्कुराहटें सजा..

बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा ,चल बुलाये तुझे वो खुला आसमान 

तुझमे सागर एक समय हुआ 
कभी खुद की लहरो में गोते तो लगा 
चल   बह चल नदियों की तरह 
इन मचलती उमंगो का वेग बना 
बुलाये तुझे वो खुला आसमान ,
धुप के छाव के पंख लगा चल बुलाये तुझे वो खुला आसमान .....


            

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