सफर ...
रास्ता रास्ता साथ है ,रफ्ता रफ्ता साथ है
एक मोड़ खूबशूरत सा ,बढ़ा रहा फिर हाथ है
तकती सी बाहें पसारे, वो पुकारती मंज़िल मेरी
किस सोच में खड़ा राही,तेरा कारवां तेरे साथ है
जो कल था वो मुड़ गया ,कुछ आज नया जुड़ गया
वक़्त की चाल के संग ,एक धुंध सा कुछ उड़ गया
अंदाज़ सफर का यही, कभी रुलाये कभी गुदगुदाए
हर मोड़ पे रोज़ जैसे ,एक किस्सा नया जुड़ गया
रास्ता रास्ता साथ है ,रफ्ता रफ्ता साथ है
एक मोड़ खूबशूरत सा ,बढ़ा रहा फिर हाथ है
तकती सी बाहें पसारे, वो पुकारती मंज़िल मेरी
किस सोच में खड़ा राही,तेरा कारवां तेरे साथ है
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