जीवन को बहने दो ..
क्यों पकड़े है मन को
पंछी बन उड़ जाने दे
खोल दे सारी खिड़कियाँ
कुछ तो हवा आने दे
ज़िंदगी की सलवटों को
कुछ खोल ,कुछ धूप दे
सीलन सी पड़ी सोच को
एक तरोताज़ा रूप दे
यादो के पिटारे को
सुन्दर लम्हों से भरने दे
एक नया श्रृंगार अब तू
जीवन को करने दे
जो हो गया वो जाने दे
जो है अभी उसे पास रख
एक सुन्दर से कल का
मन में आभास रख
जीवन तो एक रास्ता है
उस जीवन का तुझे वास्ता है
और रास्ते रुकने से नहीं
चलने से तय होते हैं
मिटटी से उपजे है हम
एक दिन मिटटी में ही विलय होते हैं
मौजो के साथ,खुद को मौज में रहने दो
एक नदी की वेग सा जीवन को बहने दो
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