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Thursday 11 February 2016









 बसंत जीवन का...

महकते है  कुछ आँचल में समेटे हुए लम्हे,
वक़्त को मोतियों सा पिरोते हुए लम्हे 
बसंत हाँ बसंत ,देखा है जीवन का
बिताये जो कुछ हँसते ,कुछ रोते हुए लम्हे 

लो झूमते है बौराये,आम की बौर से लम्हे 
उड़ते है है पंछी बन बेठौर से लम्हें 
बसंत हाँ बसंत ,देखा है जीवन का
गुनगुनाये जो  हँसते ,कुछ रोते हुए लम्हे 

निर्झर सा बहते ,हमे भिगोते हुए लम्हे 
मद्धम सी हवाओ को ,समेटे हुए लम्हे 
बसंत हाँ बसंत देखा हैं जीवन का 
मुझमे खो जाएँ जो कुछ , हँसते कुछ रोते हुए लम्हें 


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