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Tuesday 7 April 2015

ज़िंदगी एक बहती हुई कविता है ,जिसकी हर लहर में गोते लगाना और छुपे हुए हर लम्हों से शब्दों को चुराना फिर समय की ताल में उनको  गुनगुनाना और शब्दों का फिर निःशब्दता में विलीन हो जाना .....

     चुन ले चलो साथ में कुछ मोती छुपे हैं जो जीवन सागर में और फिरो ले कुछ कवितायेँ ,कुछ कहानियां ,कुछ गुनगुनाते पल ,कुछ आनेवाला कल कुछ बिता हुआ पल और बहने दे लेखनी अपनी निर्झर की तरह कल-कल .आप सभी के पोस्ट आमंत्रित हैं ....

सादर
वंदना अग्निहोत्री

1 comment:

  1. ईश्वर आपकी लेखनी को और संबल दे बल दे ...

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