Pages

Saturday 18 April 2015


प्रेम 

प्रेम एक अनुभूति जिसकी सुगंध महका जाती है  पूरा  जीवन,सुन्दर से फूल का  खिलना कभी देखा है आपने.एक एक पंखुड़ियों का धीरे धीरे खिलना ,जैसे सकुचाते हुए दो दिलो का मिलना .कोमलता का अहसास जैसे पहला स्पर्श प्रेम का और खिल उठना पूरी तरह मुस्कुराते हुए जैसे भर चूका हो अहसाह हल्की सी छुअन और मीठी सी चुभन के साथ दिल से होता हुआ आत्मा की गहराइयों में. जहाँ एहसास समा जाता है रोम रोम में उस सुन्दर कोमल फूल की भीनी सी सुगंध की तरह और शेष रह जाता है मौन जैसे निःशब्दता से फूट रहा हो संगीत, विलीन होता हुआ उस दूर  से आती मंदिर के घंटे की आवाज़ में जाकर.सच कहा है किसी ने प्रेम एक ईश्वरीय अनुभूति है और शाश्वत है इस प्रकृति की तरह जो हमे  दे रही है हर रोज़ बिना किसी शर्त के निरंतर नव -जीवन .
           दिल से निकलता है तब एक अहसास कुछ इस तरह गीत बन कर

एक आवाज़ जानी पहचानी सी कानो को छूकर निकल गयी,
 ये कौन अंजाना गुजरा जो जाना पहचाना लगता है.
मधुर यादो के उपवन में भाव भरे कुछ फूल खिले,
हम मन ही मन गुनगुना उठे कोई गीत पुराना लगता है
ये कौन अंजाना गुजरा जो जाना पहचाना लगता है
शब्दों में भाव समां गए ,भावो में शब्द विलीन हुए
इन अनजाने गीतों से कोई रिश्ता पुराना लगता है
ये कौन अंजना गुजर जो जाना पहचाना लगता है

वंदना अग्निहोत्री 

2 comments: