सुप्रभात
सु-प्रभात सच में कितना सुन्दर होता है सबेरा ,जब नींद से जाग कर प्रकृति अंगड़ाई लेती हुई ऑंखें खोलती है दूर क्षितिज में अपने सूरज की प्रतीक्षा में और अपनी लालिमा के साथ वह रोज़ सुबह आता और फैला जाता है उसके प्रेम से भरा प्रकश प्रकृति के अंतर्मन को स्पर्श करता हुआ ,नाच उठती है प्रकृति कोयल के कूक,चिड़ियों के फुदकते संगीत के साथ और शुरू होता है जीवन चक्र हमरा इस सुंदरता के साथ.
फिर दिन के भागमभाग में कहा से लाते है हम ये मन की बौखलाहट ,ये शिकायते ये गुस्सा क्या ये हमारा सत्य है या ये हमारा ऊपर से ओठा हुआ आवरण है .हमारा सच तो बहुत सुन्दर है इस प्रकृति की तरह प्रेम से पूर्ण और पूर्णता को खोज नहीं होती किसी की.फिर हम किस खोज में हैं इस उत्तर की प्रतीक्षा में मै, आप हम सब प्रयासरत हैं ...
और इसी प्रयास में क्यों न करे हम नमन एवं अभिनन्दन उस सुंदरता का जो हमे मिला है एक और दिन की तरह आज और करे तलाश अपने अंदर छुपी सुंदरता का साथ मिल कर ....
इस सुबह की लाली का ,फिर रात काली का
शाम के दुँधलके में झूमती उस डाली का
वो खिड़की में चहचहाती उस गौरईया मतवाली का
आंखमिचौली खेलती इठलाती बदली काली का
छेद जाती है छूकर मुझे उस हवा भोली भाली का
कुछ चुभ जाये उन बानो का या ,सहलाती मीठी बानी का
जीवन के हर रंग का ,कभी बेरंग शाम खाली का
अभिनन्दन है मन से आज ज़िन्दगी तेरी हर डाली का .... ......
Vandana Agnihotri
सु-प्रभात सच में कितना सुन्दर होता है सबेरा ,जब नींद से जाग कर प्रकृति अंगड़ाई लेती हुई ऑंखें खोलती है दूर क्षितिज में अपने सूरज की प्रतीक्षा में और अपनी लालिमा के साथ वह रोज़ सुबह आता और फैला जाता है उसके प्रेम से भरा प्रकश प्रकृति के अंतर्मन को स्पर्श करता हुआ ,नाच उठती है प्रकृति कोयल के कूक,चिड़ियों के फुदकते संगीत के साथ और शुरू होता है जीवन चक्र हमरा इस सुंदरता के साथ.
फिर दिन के भागमभाग में कहा से लाते है हम ये मन की बौखलाहट ,ये शिकायते ये गुस्सा क्या ये हमारा सत्य है या ये हमारा ऊपर से ओठा हुआ आवरण है .हमारा सच तो बहुत सुन्दर है इस प्रकृति की तरह प्रेम से पूर्ण और पूर्णता को खोज नहीं होती किसी की.फिर हम किस खोज में हैं इस उत्तर की प्रतीक्षा में मै, आप हम सब प्रयासरत हैं ...
और इसी प्रयास में क्यों न करे हम नमन एवं अभिनन्दन उस सुंदरता का जो हमे मिला है एक और दिन की तरह आज और करे तलाश अपने अंदर छुपी सुंदरता का साथ मिल कर ....
इस सुबह की लाली का ,फिर रात काली का
शाम के दुँधलके में झूमती उस डाली का
वो खिड़की में चहचहाती उस गौरईया मतवाली का
आंखमिचौली खेलती इठलाती बदली काली का
छेद जाती है छूकर मुझे उस हवा भोली भाली का
कुछ चुभ जाये उन बानो का या ,सहलाती मीठी बानी का
जीवन के हर रंग का ,कभी बेरंग शाम खाली का
अभिनन्दन है मन से आज ज़िन्दगी तेरी हर डाली का .... ......
Vandana Agnihotri
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