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Friday 17 April 2015


प्रार्थना 

सूरज की लालिमा में नहाता हुआ आकाश कितना सुन्दर और लुभावना अपनी मन की तरंगो को प्रकृति से जोड़ कर  कर ली एक प्रार्थना उसने प्रेम ही प्रेम हो इस दुनिया में हर तरफ हर जगह इस सुन्दर ईश्वरीय दृश्य की तरह .सुबह की शीतलता सबके मन को शीतल करे जिसका  आभास रात की गहरी और निश्चिन्त नींद के साथ थापकिया दे कर सुलाए हमे और  हर एक दिन हम अपने सपने पूरे करे और दूसरो को भी उनके सपनो तक पहुचाएं .हाथ से हाथ मिले, साथ को साथ मिले और इस धरा को एक सुन्दर सा  घर हम बनायें ..भाईचारा ,सौहार्द मानवता के मन में राज़ करे ,कितनी सुन्दर है ये दुनिया ये हम सब इस जीवन में जान पाएं
       एक ठंडी हवा का झोका सहला गया उसके गालो को ,कुछ छेड़ते हुए बालो को कह रहा हो जैसे स्वीकार है यह प्रार्थना मन की गहराइयो से जो की तुमने. तभी  हंस पड़ा एक  गुलाब उसके आँचल से खेलता हुआ मुड़ कर थम लिया उसने अपनी हथेलियों में  सुर्ख गुलाब को अपनी गुलाबी होंठो की छुअन के साथ .

सुप्रभात ,
वंदना अग्निहोत्री

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