जीवन के किस मोड़ पर हम ये भूल जाते है कि अपने तय किये हुए लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए जीवन के जो बहुमूल्य क्षण हम लगते है वो कभी दुबारा लौट कर वापस नहीं आते और हमारा ये हठ कि लक्ष्य प्राप्ति ही हमे ख़ुशी देगा एक नादान बच्चे कि जिद्द की तरह है .हम एक नादान बच्चे की तरह जब जिद कर सकते है तो उसी मासूमियत से हम एक बच्चे कि तरह हर छोटी ख़ुशी में खुश क्यों नहीं होते .लक्ष्य तक पहुचने के सफर में भी हमे खुशियाँ ढूंढनी पड़ेंगी क्योकि एक प्रसन्नचित व्यक्तित्व ही सफलता कि ऊँचाइयों तक पंहुचा सकता है.
उम्र के इस दौर में मैंने ये सीखना शुरू किया है , और प्रतिदिन इस सीख को अपने जीवन में उतरती हुई अपने जीवन के सफर का आनंद ले रही हूँ.नमन मेरे गुरु को .
हमारे अंदर का बच्चा खिलखिलाना चाहता है खुलकर अपने सहज रूप में ,अपनी हर नादानी के साथ ,मासूमियत की बारिश में नहाते हुए.मै प्रयासरत हूँ क्या आप तैयार है? इस विचार के साथ आपको गुलज़ार साहेब कि पंक्तियों के साथ छोड़ जाती हूँ.......
दिल तो बच्चा है जी ,थोड़ा कच्चा है जी ......
सादर
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