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Thursday 2 July 2015










जीवन के किस मोड़ पर हम ये भूल जाते है कि अपने तय किये  हुए लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए जीवन के जो बहुमूल्य क्षण हम लगते है वो कभी दुबारा लौट कर वापस नहीं आते और हमारा ये हठ कि लक्ष्य प्राप्ति ही हमे ख़ुशी  देगा एक नादान बच्चे कि जिद्द की तरह है .हम एक नादान बच्चे की तरह जब  जिद  कर सकते  है तो  उसी  मासूमियत से हम एक बच्चे कि तरह हर छोटी  ख़ुशी  में खुश क्यों  नहीं होते .लक्ष्य तक पहुचने के सफर में  भी हमे खुशियाँ ढूंढनी  पड़ेंगी क्योकि एक प्रसन्नचित व्यक्तित्व ही सफलता कि ऊँचाइयों  तक पंहुचा सकता है.
     उम्र के इस दौर में मैंने ये सीखना शुरू किया है , और प्रतिदिन इस सीख को अपने जीवन में उतरती हुई अपने जीवन के सफर का आनंद ले रही हूँ.नमन मेरे गुरु को .
       हमारे अंदर का बच्चा खिलखिलाना चाहता है खुलकर अपने सहज रूप में ,अपनी हर नादानी के साथ ,मासूमियत की बारिश में नहाते हुए.मै प्रयासरत हूँ क्या आप तैयार है? इस विचार के साथ आपको गुलज़ार साहेब कि पंक्तियों के साथ छोड़ जाती हूँ.......

दिल तो बच्चा है जी ,थोड़ा कच्चा है जी ......

सादर 

       

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