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Tuesday 7 July 2015

कुछ अलसाये शब्द पड़े हैं कोने में 


अभाषित और परिभाषित के बीच कुछ शब्द पड़े है सोए से
अलसाये से कुछ शब्द धुंध की चादर ओढ़ कर कही खोये से
आवाज़ लगाती एक रचना उन्हें, आतुर है कुछ आकर लेने को
देखो झांकता धीरे से कोई शब्द शायद अहसास कोई
आंखमिचौली खेलते से ,कही राग है कही विराग है
कभी हर्ष है,संधर्ष है कभी मन में छिपा उत्कर्ष है
वो देखो धुंध से निकालता प्रेम कही, लुक छिप कर
आस पास पड़े है शब्द मेरे और एक रचना आतुर है आकर लेने को
आभाषित और परिभाषित के बीच कुछ शब्द बड़े है सोए से
अलसाये से कुछ शब्द धुंध की चादर ओढ़ कर कही खोये से
आवाज़ लगाती एक रचना उन्हें आतुर है कुछ आकर लेने को

मै सोच में हूँ क्या लिखूँ,चलो आज कुछ नया लिखूँ
राग लिखूँ ,अनुराग लिखूँ या प्रकृति जो करती हमसे वो संवाद लिखूँ
वो भौरों  का स्पर्श लिखूँ या लिखूँ कली का खिल जाना
कैसे ढालू शब्दों में वह कलियों का गुंजन में मिल जाना
मदमाती मस्त नदियों का संवेग बहा दू शब्दों से
या इंतजार लिखूँ उस सागर का ,कि मिलन लिखूँ नदियों से
सोचती हूँ धरा कि प्यास लिखूँ ,या चकोर कि आस लिखूँ
या नेह बरसाते उस आकाश का वह विस्तृत आभास लिखूँ
अभाषित और परिभाषित के बीच कुछ शब्द बड़े है सोए से
अलसाये से कुछ शब्द धुंध की चादर ओढ़ कर कही खोये से
आवाज़ लगाती एक रचना उन्हें आतुर है कुछ आकर लेने को

सोचती हूँ बांध लूँ आज सारा संसार शब्दों में
कुछ सोच तेरी ले लूँ ,कुछ मेरे विचार शब्दों में
लिखूँ प्रियतम का नेह या प्रिये का इंतज़ार शब्दों में
या दूर क्षितिज पर मिलन का एहसास लिखूँ मै शब्दों में
अभाषित और परिभाषित के बीच कुछ शब्द बड़े है सोए से
अलसाये से कुछ शब्द धुंध की चादर ओढ़ कर कही खोये से
आवाज़ लगाती एक रचना उन्हें आतुर है कुछ आकर लेने को


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