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Sunday 5 July 2015

तपन से तृप्ति की चाह में आज बाहें फैलाये स्वागत करती वसुंधरा  बारिश का,मानो आकाश पूरा अपनी आगोश  में समां लेना चाहती हो ,ये ठंडी तेज़ हवाएँ ,ये पत्तियों की फुसफुसाहट ,वो दूर झूमते पेड़ो की मंद मंद मुस्कराहट ,चाँद भी छिप गया वो तारो ने भी बादल ओढ़ लिया ,चुगली कर रही  देखोवो  मचलती बिजलियाँ ,और  पिघल ही गया आकाश पूरा अपने विस्तार को भूल कर बस  मौन सी निहारती मै महसूस करती इस  खूबसूरत से  अहसास को जो आस पास है आज की बारिश के मौसम में .. सच है हर कण कण बोलता है इस दुनिया का, आवश्यकता है  हमे  अपनी  संवेदनाओ का विस्तार करने की ,सच ये दुनिया  तब सभी को खूबसूरत नज़र आएगी........








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