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Thursday 30 July 2015

कृष्णं वन्दे जगत गुरुम ...



गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाये .इस  अवसर पर अपने माता -पिता एवं गुरुजनो तो प्रमाण कर कुछ विचार अपने  कृष्ण को अर्पित करती हूँ .कृष्ण पता नहीं क्यों रोम रोम में रमता है ये नाम .पुरुषोत्तम है जो नाम से ,अपने ज्ञान से और अपने कर्म से .परमात्मा जो पूर्णता की पराकाष्ठा है ,परमात्मा  जो निराकार है ,फिर भी उसने स्वीकार किया साकार होना सिर्फ प्रेम के कारण ,क्योकि हम वो मानते है जो हमे दिखाई देता है ,हर किसी के पास ज्ञान चक्षु जागृत नहीं होता .अपने ईश्वरीय गुरुता का त्याग कर प्रेम स्वीकारता  कृष्ण ,संसार को अपने इशारो पे नाचने वाला परमात्मा गोपियों के लिए गोपियों के साथ स्वयं को विलीन कर नाचता कृष्ण .
                              राधा-कृष्ण  परम प्रेम की पराकाष्ठा, सच्चे पेम की अद्भुत उपमा ,प्रेम और ज्ञान का अवर्णनीय संगम.क्या है परम प्रेम ?स्वयं की अंत से अनंत होने की यात्रा. हर  एक अपूर्णता से गुजरकर पूर्णता को प्राप्त होती अनुभूति प्रेम  है .वह यात्रा  जिसका अंतिम पड़ाव आत्म ज्ञान है.जो जगत का गुरु है ,जो स्वयं हर ज्ञानियो का ज्ञान है ,जिसे जानने के बाद कुछ भी जानना  शेष नहीं ,उसने स्वीकारा है प्रेम में विलय होना ,जो मुक्त है इस सांसारिक अनुभवों से ,उसने स्वीकारा है स्वयं को प्रेम की डोर से बांधना  उस बंधन में जिसमे कोई बंधन वास्तविक रूप से है नहीं क्योकि गीता हमे सिखाती  है आत्मा हर बंधन से मुक्त है फिर भी जिसमे आत्मा एक हो जाती है ,एक अनदेखे कोमल डोर से बंधी हुई 
        ज्ञान तो था ,उस उद्धव को बहुत ज्ञान था ,इसलिए वो कृष्ण के इतने समीप था ,पर गोपियों से मिलते ही स्तब्ध रह गया ज्ञान उसका ,मौन रह गया अभिमान उसका , और लौट  कर आया वह तो भीग चुका था  कृष्ण  प्रेम में पूर्णतः , क्योकि देखी थी उसने पराकाष्ठा प्रेम की जिसमे राधा में कृष्ण को पाया था उसने, और हर गोपी में कृष्ण नज़र आया था उसे ..कृष्ण ने कहा था तब ,इस प्रेम में नहाये बिना तुम्हारा ज्ञान अधूरा रह जाता इसलिए भेजा था मैंने तुम्हे .
      सच्चा -प्रेम ,जिसमे सच (ज्ञान) भी है और प्रेम भी है ,बराबर अनुपात में ,आवश्यक रूप से क्योकि प्रेम से हम प्रेम को कैसे अलग कर सकते है  ज्ञान की खोज में .ईश्वरीय गुणों का मानवीय गुणों में पूर्णतः विलय, यही सीखा गया वो ,हँसता नाचता ,खेलता ,माखन के रूप में ह्रदय चुराता और साथ ही कुरुक्षेत्र के विहंगम दृश्य में भी गीता का ज्ञान बताता वह परमात्मा .आज फिर से आवश्कयता है उस गुरु की इस असंतुलित होते संसार को .आ जाओ कृष्ण फिर से परम  प्रेम की सरिता बहाने ,ज्ञान के उजाले बिखेरने .प्रतीक्षारत है नयन हमारे .
            श्री कृष्णः शरणम् ममः 

एक भजन की कुछ पंक्तियों के साथ एक बार फिर गुरुपूर्णिमा की बधाई स्वीकार करें

मुरलीवाले तुम कित धाए तेरी राधा करे पुकार हो ,घर आओ मेरे सावरियाँ,
बाल  तरस रहे ग्वाल तरस रहे ,तरसे सब ब्रजनारी रामा  तरसे सब ब्रज नारी
प्रीत लगा के ओ मनमोहन कैसी सूरत बिसारी रामा कैसी सूरत बिसारी
आ भी जाओ, आकर देखो ब्रज का है बुरा हाल हो .कौन बजाये अब बसुरियां 

अपने भागवत  गुरु पूजनीय  स्वामी अवधेशानन्द जी एवं अपने परम गुरु शिव योगी पूजनीय शिवानंद जी और मेरे कृष्ण के चरणो में वंदन  वंदना का .


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