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Tuesday 28 April 2015

                              शिव -शक्ति 

Shiv-Shakti 
प्रेम अपनी पूर्णता पर तब पहुंचता है जब स्वीकार होती है उसमे कोमलता और जटिलता दोनों ही.जहाँ साथ होते है एक ही तल पर धैर्य और अधीरता एक साथ .जहा शिव सी सरलता और  स्वाभाविकता है तो शिवा सा सौंदर्य और कोमलता .जहाँ साथ हैं ज्ञान सा ठोस आधार और प्रेम सा कोमल भाव एक ही धरातल पर .जहाँ अनुबंध हैं जनम जनम का फिर भी है व्यग्तिगत स्वतंत्रता . अद्वैत का भाव है शिव और शक्ति में फिर भी कहीं विलय नहीं किसी एक व्यक्तित्व का दूसरे में. एक सुर है तो दूसरा गीत है ,एक दूसरे का पर्याय है फिर भी उनकी अपनी अलग रीत है अलग पहचान है  ,सुर मौन है तो गीत शब्दों का ताना बना है. 
                   जब पहुंच जाता है प्रेम स्वीकृति की  चरम  सीमा पर तब गूंज उठता है संगीत जीवन में और शेष रह जाता है थिरकता हुआ प्रेम किसी उत्सव की तरह अपनी हर अपूर्णता के साथ पूर्ण हो कर .

वंदना अग्निहोत्री 

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